ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। मई महीने में थोक महंगाई दर 0.39% पर आ गई है। ये इसका 14 महीने का निचला स्तर है। इससे पहले मार्च 2024 में थोक महंगाई दर 0.26% रही थी। रोजाना की जरूरत के सामान और खाने-पीने की चीजों की कीमतों के घटने से महंगाई कम हुई है।
इससे पहले अप्रैल में थोक महंगाई 2.05% से घटकर 0.85% पर आ गई थी। ये महंगाई का 13 महीनों का निचला स्तर था। वहीं मार्च 2024 में महंगाई 0.53% पर थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने दो दिन पूर्व ये आंकड़े जारी किए हैं।
रोजाना की जरूरत वाले सामानों (प्राइमरी आर्टिकल्स) की महंगाई -1.44% से घटकर -2.02% हो गई। खाने-पीने की चीजों (फूड इंडेक्स) की महंगाई 2.55% से घटकर 1.72% हो गई। फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर -2.18% से घटकर -2.27 रही। मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर 2.62% से घटकर 2.04 रही।
रिटेल महंगाई 6 साल के निचले स्तर पर आई
इससे पहले पांच दिन पूर्व जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की रिटेल महंगाई मई में 2.82% पर आ गई है। ये 6 साल का निचला स्तर है। इससे पहले मार्च 2019 में ये 2.86% रही थी। खाने-पीने के सामान की कीमतों में लगातार नरमी के कारण रिटेल महंगाई घटी है।
इससे पहले अप्रैल में रिटेल महंगाई घटकर 3.16% पर आई गई थी। वहीं मार्च महीने में रिटेल महंगाई 3.34% रही थी। ये महंगाई का 67 महीने का निचला स्तर था। रिटेल महंगाई फरवरी से आरबीआई के लक्ष्य 4% से नीचे है।
होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) का आम आदमी पर असर थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए डब्ल्यूपीआई को कंट्रोल कर सकती है।
जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंन्धन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। डब्ल्यूपीआई में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।
होलसेल महंगाई के तीन हिस्से प्राइमरी आर्टिकल, जिसका वेटेज 22.62% है। फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15% और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे ज्यादा 64.23% है। प्राइमरी आर्टिकल के भी चार हिस्से हैं।
दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई। रिटेल महंगाई दर ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसे कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स कहते हैं। होलसेल प्राइस इंडेक्स का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।