ब्लिट्ज ब्यूरो
गुवाहाटी। अपने उफान पर बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का बहाव आज शांत है। उत्तर-पूर्व भारत के राज्य बोंगाईगांव जिले में नूर का गांव बसा हुआ है। पानी का कम बहाव फ्लोटिंग बोट को गांव तक आने देने में रुकावट डाल रहा है।
आज 9 महीने की नूर खातून को खसरा और रूबेला और जापानी एन्सेफलाइटिस से बचाव का टीका लगाया जाएगा। उसे विटामिन ए की खुराक भी दी जाएगी। नूर की 25 वर्षीय मां मुनावरा खातून स्वास्थ्य केंद्र पर बोट क्लिनिक के आने का इंतजार कर रही है।
मुनावरा खातून पिछली बार की बोट क्लिनिक की विजिट के बजाय इस साल जून में आने वाली बोट के लिए निश्चिंत हैं क्योंकि पिछली बार गांव में आई बाढ़ से उनका घर और गांव डूब गये थे।
बोट क्लिनिक पर 41 वर्षीय निरुपमा रॉय एक अनुभवी नर्स और दाई हैं। वह एक दशक से भी ज्यादा समय से बोट क्लिनिक पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। पानी की लहरों पर चल रही बोट क्लिनिक में सुबह की उथल-पुथल के बीच निरूपमा और उसके सहयोगी शांति से काम कर रहे हैं। वह रजिस्टर अपडेट करने से लेकर कॉल्ड चेन के टीकों को संभाल रहे हैं और खोरचीमारी द्वीप पर नूर के गांव में पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। नूर के गांव में अस्थायी रूप से संचालित होने वाली बोट क्लिनिक को चार्स या सपोरिसस के नाम से जाना जाता है।
एक तरह से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
बोट क्लिनिक एक तरह से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का काम करता है। इसमें लैब, ओपीडी, फार्मेसी और कॉल्ड चेन पाइंट जैसी सभी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। बोट क्लिनिक में पैरामेडिकल स्टाफ में दो सहायक नर्से , एक फार्मासिस्ट, लैब टेक्निशियन, सामुदायिक कार्यकर्ता और सहायक कर्मचारी मौजूद रहते हैं। जब नाव नूर के गांव पहुंची तो निरुपमा का दिन बोट क्लिनिक पर शुरू हो गया।
इन समुदायों को बोट क्लिनिक पर मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा अन्य कोई स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती। अगर इनके पास बोट न पहुंचे तो इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। हमारी नाव पर तैनात इस क्लीनिक के बलबूते पर ही हाशिए पर रहने वाले इन समुदायों की महिलाएं व बच्चे खुश और स्वस्थ हैं। जब हम इनके पास पहुंचते हैं, तो इनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती है और हमें भी ऐसा ही लगता है कि ये हमारे अपने बच्चे हैं। हम अपने काम का आनंद लेते हैं। निरुपमा दमकती हुई मुस्कान के साथ बताती हैं।
आशा की नाव
नदियों के जाल और पहाड़ी क्षेत्रों के साथ असम अपनी कलात्मक और अनूठी छटा बिखेरता है। लेिकन यही नदियां और पहाड़ दूर दराज के ग्रामीण एरिया में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में बाधा बन जाती हैं। मानसून के मौसम में जहां एक तरफ सभी बारिश का आनंद लेते हैं, वहीं असम के कुछ गांव ऐसे हैं जो पुरी तरह से बाढ़ के पानी में गहराई में डूब जाते हैं और यहां के स्थानीय निवासी बेघर हो जाते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए इन लोगों तक पहुंचना जितना जरूरी हो जाता है वहीं पहाड़ी और दुर्गम रास्तों की वजह से तो कभी नदियों के फैले पानी के कारण पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
ब्रहमपुत्र नदी का कोप
बोंगाईगांव जिले के इन नदियों पर बसे द्वीपों को ब्रहमपुत्र नदी का तेज बहाव हर बार एक नई जगह ले जाकर विस्थापित कर देता है। एक द्वीप जो कभी एक हराभरा गांव होता था, पशुओं और हरियाली से भरपूर गांव मौसम की तेज बारिश के साथ रातोंरात नष्ट हो जाता है। ऐसे में गांव में रहने वाले निवासियों को विस्थापन का खतरा तो रहता ही है और साथ ही पूरे द्वीप के गायब होने का संकट भी रहता है। बोट क्लीनिक नूर की मां जैसे हजारों लोगों के लिए आशा की किरण है। यह लोगों के लिए जीवन रेखा की तरह काम करते हुए हर महीने करीब 20,000 लोगों तक आवश्यक चिकित्सा सेवा और बच्चों तक ममता पहुंचाते हैं।
इन द्वीपों के लगातार बाढ़, जमीनी कटाव अस्थायी आवास और विस्थापन के कारण बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का निर्माण और रख-रखाव करना असंभव है। इसीलिए कनेक्टिविटी देसी नावों तक ही सीमित है। यहां रहने वाली अधिकांश आबादी गरीब है। इन गांवों में गर्भवती महिलाओं, माओं और नवजात शिशुओं की देखभाल सेवाओं का अभाव है, नतीजन रुग्णता और मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2004 में एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर नॉर्थईस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी (सी- एन ईएस) ने क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं के लिए बोट क्लिनिक को लॉन्च किया।