विनोद शील
नई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजे सामने आ गए हैं। हरियाणा के नतीजों की गूंज दूर-दूर तक जाएगी जहां शुरुआती रुझानों में कांग्रेस को बढ़त तो मिली थी पर बाद में वह धराशायी हो गई और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हरियाणा में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में तीसरी बार लगातार ‘नायाब जीत’ व सत्ता हासिल कर राज्य में एक नया कीर्तिमान गढ़ दिया है।
जम्मू और कश्मीर में क्षेत्रीय आधार पर विभाजन हो गया। जहां घाटी में नंबर एक पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) बनी तो जम्मू में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांगेस सिर्फ नेकां की पिछलग्गू पार्टी की तरह ही नजर आई। एक तरह से हरियाणा तथा जम्मू और कश्मीर में छोटी पार्टियां सत्ता की लड़ाई में बाहर हो गईं। हरियाणा में इंडिया गठबंधन पूरी तरह से बिखर गया तो जम्मू और कश्मीर में उसकी एकजुटता दिखी। हरियाणा में तो एक समय कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी में चुनाव गठबंधन तक पर बात चली थी पर वह आकार नहीं ले सकी।
अगर गौर करें तो जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के जनादेश से दो खास और महत्वपूर्ण संदेश मिल रहे हैं। पहला यह कि जम्मू-कश्मीर के चुनावों ने विश्व को यह संदेश दिया कि भारत के इस भूभाग में लोकतंत्र और सशक्त तथा जीवंत हुआ है। यहां वर्षों से चले आ रहे अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हटा दिया गया था। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में यह पहले विधानसभा चुनाव थे जिनमें मतदाताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं हरियाणा का जनादेश डबल इंजन के फेल होने के उस नैरेटिव को भी खारिज करता है जिसे विपक्ष ने अपने प्रचार के दौरान गढ़ने का भरपूर प्रयास किया।
बीजेपी ने हरियाणा में 2014 के अपने प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया और 48 सीटों पर जीत दर्ज की है। 57 सालों के बाद राज्य में पहली बार किसी पार्टी को लगातार तीसरी बार जीत (हैट्रिक) मिली है। यह बीजेपी की हरियाणा में अब तक की सबसे बड़ी जीत भी है। बीजेपी ने 2014 में हरियाणा में 47 तो 2019 में 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार पार्टी ने कुल 90 सीटों में से 48 सीटों पर जीत हासिल की है।
व हीं जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की स्थिति पहले से मजबूत हुई है। बीजेपी को इस बार 29 सीटें मिली हैं जबकि 2014 में 25 सीटें ही जीती थीं। जम्मू-कश्मीर में इस बार उसे करीब 2.65 प्रतिशत वोट अधिक मिले। कांग्रेस को दोनों राज्यों में नुकसान हुआ। हरियाणा में सत्ता विरोधी रुझान तथा किसान-पहलवान-जवान के नारे के समीकरण के आधार पर कांग्रेस अपनी जीत तय मान चुकी थी लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी। उसे पिछली बार से भी कम सीटें मिलीं। हरियाणा में ऐसा नैरेटिव सा बनाया गया था कि कांग्रेस को सत्ता मिलना तय है। किसानों, महिला पहलवानों और अग्निवीर जवानों को पीएम मोदी के विरोध में बताने का प्रचार किया गया था लेकिन नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसान आंदोलन ‘समर्थ किसानों’ और राजनीतिक दलों द्वारा पोषित था और महिला पहलवानों का आंदोलन भी राजनीति से ही अधिक प्रेरित था और अग्निवीर पर हुआ प्रचार भी अनर्गल साबित हुआ।
हरियाणा में मोदी का जादू ; डबल इंजन सरकार- फिर एक बार
– 48 सीटों संग बीजेपी ने हरियाणा में हारी हुई बाजी जीती
– एक्जिट पोल के नतीजे फिर हुए धड़ाम
– जम्मू-कश्मीर में 29 सीटें जीत बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी
– कांग्रेस दोनों राज्यों में सिर्फ घाटे में ही रही
– छोटी पार्टियां हो गईं सत्ता की लड़ाई से बाहर
– किसान, महिला पहलवान आंदोलन व अग्निवीर मुद्दा अनर्गल साबित हुआ
याद रहेगा 2024 का हरियाणा विधानसभा चुनाव
2024 का हरियाणा विधानसभा चुनाव इस बात के लिए याद किया जाएगा कि बीजेपी ने किस तरह से हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया। हरियाणा में बीजेपी की यह जीत आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों के बीच भी चर्चा का विषय बनी रहेगी कि आखिर सभी एग्जिट पोल के नतीजों में जीतने वाली कांग्रेस हार कैसे गई? सभी एग्जिट पोल के नतीजों में हारने वाली बीजेपी कैसे जीत गई? राजनीतिक विश्लेषक इसके अर्थ निकलाने में व्यस्त होंगे पर एक बात तय है कि इस चुनाव ने कई भ्रांतियों को चकनाचूर कर दिया। हरियाणा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को 37 सीटें मिली हैं, आईएनएलडी के खाते में 2 सीटें गई हैं जबकि 3 सीटों पर अन्य का कब्जा रहा है।
सीएम बदलने का फार्मूला काम कर गया
हरियाणा में बीजेपी के नायब सिंह सैनी असल मायनों में छुपा रुस्तम साबित हुए। सौम्य स्वभाव सैनी का नाम मुख्यमंत्री बनने से पहले राज्य से बाहर शायद ही किसी ने सुना होगा। चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर की जगह पर उन्हें हरियाणा के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। 10 साल की एंटी-इन्कंबेंसी थी। किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन की वजह से जाट वोटरों में बीजेपी के प्रति जबरदस्त नाराजगी थी। सैनी ने चमत्कार कर दिया। इतिहास रच दिया। बीजेपी के इस नायाब हीरे ने राज्य की सत्ता में पार्टी की जीत का हैटट्रिक बनवा दिया। एक ऐसा करिश्मा जो सूबे में अबतक किसी पार्टी ने नहीं किया था। इतना ही नहीं, तमाम सियासी पंडितों और एग्जिट पोल के अनुमानों को झुठलाते हुए बीजेपी ने न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि राज्य में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के पिछले रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया। ज्ञात हो कि बीते लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल की धज्जियां उड़ गई थीं।
बीजेपी का दलित वोट पर फोकस
पिछले दो दशकों से जाट पॉलिटिक्स के बल पर हरियाणा में कांग्रेस राज करती आ रही थी, उसी जाट राजनीति को हथियार बना कर बीजेपी ने कांग्रेस को धूल चटा दी। कांग्रेसी सोच रही होगी कि आखिर चूक हुई तो कहां हुई और कैसे हुई? इसको लेकर आने वाले दिनों में कांग्रेस में सर-फुटव्वल भी तय माना जा रहा है। लेकिन बीजेपी ने जिस होशियारी से किला फतह किया है उसकी आने वाले दिनों में तारीफ तो होगी ही।
ऐसे जीती हारी बाजी
बीजेपी की मजबूत रणनीति ने कांग्रेस को उसके मजबूत किले में मात दी। बीजेपी ने यह रणनीति तो 6 महीने पहले ही बना ली थी जब उसने चुनाव से पहले सीएम बदल दिया था। इसके बाद बीजेपी ने दो दर्जन एमएलए को टिकट भी नहीं दिया। बागियों को मनाने के बजाए जमीनी कार्यकर्ताओं को मनाने पर जोर लगाना, दलित वोट पर फोकस करना, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को ज्यादा भाव नहीं देना, गैर जाट वोट को अपनी तरफ लाने के लिए छोटी-छोटी जातियों के नेताओं का साधना, सरकार की कई वेलफेयर स्कीम दलितों के लिए शुरू करना और फिर जमीन पर आक्रामक प्रचार करने की रणनीति ने बीजेपी की हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया।
खेमेबाजी ने किया नुकसान
जहां बीजेपी ने अपनी अंदरूनी लड़ाई को मैनेज किया, वहीं कांग्रेस आलाकमान पार्टी की अंदरूनी खींचतान को लेकर खास कुछ कर नहीं पाई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, शैलजा और सुरजेवाला के एक साथ खुद को बतौर सीएम पेश करने के अलावा टिकट वितरण में खेमेबाजी ने चुनावी प्रक्रिया के मद्देनजर पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया । टिकट बंटवारे में तो साफ तौर पर इसका नकारात्मक प्रभाव दिखा।
गुजरात का मॉडल हरियाणा में
ये सही है कि बीजेपी के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ राज्य में एंटी इनकंबेंसी का माहौल था लेकिन इससे पार पाने के लिए बीजेपी ने नायब सैनी को बतौर सीएम उतारा और खट्टर को भी सक्रिय प्रचार से दूर रखा। दरअसल ऐसा ही प्रयोग बीजेपी गुजरात में पहले कर चुकी थी जो सफल साबित हुआ था।
बिना खर्ची-पर्ची का नारा चल गया
बीजेपी चुनाव प्रचार के जरिए ये साबित करने में कामयाब रही कि सरकारी नौकरियों में भर्तियां पारदर्शी तरीके से हुईं। बीजेपी ने इस मामले में हुड्डा सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि बीजेपी के राज में बिना खर्ची-बिना पर्ची के लोगों को नौकरी मिल रही थी। युवाओं का बीजेपी को लेकर आकर्षण का ये एक कारण हो सकता है। हरियाणा में जीत के बाद बीजेपी ने पॉलिटिकल नैरेटिव पर कब्जा जमाए रखा, साथ ही पार्टी को वापस मोमेंटम भी मिल गया। लोकसभा के बाद कांग्रेस बनाम बीजेपी का यह पहला बड़ा मुकाबला था जो बीजेपी के खाते में गया है। बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। वहीं, कांग्रेस ने अति आत्मविश्वास और एकीकृत राज्य नेतृत्व की कमी की कीमत चुकाई। हुड्डा फैक्टर पर गौर करें तो इस वजह से गैर-जाट ओबीसी का बीजेपी के पक्ष में एकीकरण होता हुआ नजर आया जबकि दलित वोट बंट गया। चुनाव के रिजल्ट में देखा गया कि कई सीटों पर जीत का अंतर भी बहुत कम रहा। कांग्रेस की तुलना में बीजेपी स्थानीय चुनावी कारकों का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने में भी सफल रही।
कश्मीर में पीडीपी को लगा बड़ा झटका
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की। राज्य की 49 सीटें गठबंधन के खाते में गईं। सबसे बड़ा झटका महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को लगा है जो सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी। 2014 में उसे 28 सीटों पर जीत मिली थी।
अब महाराष्ट्र और झारखंड की बारी
अब महाराष्ट्र और झारखंड की बारी है। ये दो राज्य तय कर सकते हैं कि 2024 में अंतिम शेखी बघारने का अधिकार किसके पास है। इस चुनाव के रिजल्ट में देखने को मिला कि मोदी फैक्टर मजबूत और लचीला है जबकि राहुल गांधी को अपनी पार्टी को फिर से ऊपर उठाने की जरूरत है।