ब्लिट्ज ब्यूरो
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरएस) के अनुसार, सभी प्रकार के तंबाकू में कैंसरजन्य तत्व पाए जाते हैं। इनमें एन-नाइट्रोसामाइन और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे रसायन शामिल हैं, जो डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में पाए जाने वाले मुंह के कैंसर के लगभग 90% मामले तंबाकू सेवन से जुड़े होते हैं।
ओरल कैंसर (मुंह का कैंसर) एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम है जिसके मामले वैश्विक स्तर पर बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं। भारतीय आबादी, विशेषकर ग्रामीण भारत में इसका जोखिम और भी ज्यादा है, जहां तंबाकू चबाने वाले लोगों की संख्या अधिक है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, धूम्रपान और धुआं रहित तम्बाकू (खैनी-गुटखा) दोनों को मौखिक कैंसर (ओरल कैंसर) के जोखिमों को काफी हद तक बढ़ाने वाला माना जाता रहा है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी का अनुमान है कि साल 2023 में ओरल कैंसर के लगभग 54,540 नए मामलों का निदान किया गया। इससे पहले 2022 में दुनियाभर में मौखिक कैंसर के अनुमानित 30.8% मामले धुआं रहित तम्बाकू या सुपारी के कारण थे।
तंबाकू के कारण सेहत को होने वाले नुकसान, बीमारियों के बढ़ते खतरे के बारे में लोगों को जागरूक करने और तंबाकू छोड़ने को लेकर लोगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। क्या हम सिर्फ एक दिन तंबाकू पर चर्चा करके उस जहर की गंभीरता समझ सकते हैं जो हर रोज हजारों जिंदगियां निगल रहा है? विशेष रूप से भारत में तंबाकू के सेवन से जुड़ा मुंह का कैंसर एक खतरनाक महामारी का रूप ले चुका है।
हर साल मुंह के कैंसर के 1 लाख से ज्यादा मामले
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा लोग मुंह के कैंसर से ग्रस्त होते हैं। पुरुषों में यह दूसरा सबसे आम कैंसर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गुटखे की सुलभता और कम कीमत इस संकट को और गहरा बना रही है। तंबाकू के कारण स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी बोझ भी पड़ता है। साल 2022 में भारत ने तंबाकू से होने वाले रोगों पर ₹77,000 करोड़ से अधिक खर्च किए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि तंबाकू या धूम्रपान से मुंह का कैंसर होने में कितने वर्ष लग सकते हैं, लेकिन ओरल कैंसर के लिए प्रमुख जोखिम कारक जरूर है। धूम्रपान करने से व्यक्ति के ओरल कैंसर का जोखिम छह गुना बढ़ जाता है। अच्छी बात ये है कि अगर आप तंबाकू-धूम्रपान छोड़ देते हैं तो इसके खतरे को काफी कम कर सकते हैं।
साल 2024 में वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट (वीपीसीआई) द्वारा साझा की गई एक रिपोर्ट में पता चला था कि भारत में 18-24 वर्ष की आयु के लगभग 46.96 प्रतिशत युवा वयस्कों ने तंबाकू छोड़ दिया है। नेशनल टोबैको क्विटलाइन सर्विसेज (एनटीक्यूएलएस) द्वारा प्राप्त कॉल के डेटा सर्वेक्षण के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला था। तंबाकू छोड़ने के कुछ ही दिनों में इसके शरीर पर अच्छे असर दिखने लगते हैं।
तंबाकू छोड़ने का असर
– अध्ययनों से पता चलता है कि धूम्रपान के बिना सिर्फ 12 घंटे बिताने के बाद से ही शरीर अतिरिक्त कार्बन मोनोऑक्साइड को बाहर निकालना शुरू कर देता है।
-कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सामान्य होने पर शरीर में ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ने लगता है।
– लगभग 2 सप्ताह के बाद रक्त संचार में सुधार होने लगता है। हृदय और मांसपेशियों में रक्त का संचार ठीक हो जाता है साथ ही फेफड़ों की कार्यक्षमता में भी सुधार होने लगता है।
-एक महीने तक धूम्रपान तंबाकू-धूम्रपान से दूरी बनाने से खांसी और सांस लेने में तकलीफ कम हो जाती है।
– वहीं एक साल तक धूम्रपान न करने से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी हृदय रोग का खतरा धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तुलना में आधा हो जाता है।