ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि नया वक्फ कानून वैधानिक है और किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता। केंद्र ने कहा कि अदालत वैधानिक प्रावधानों पर रोक नहीं लगा सकती। केंद्र ने कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए इसे खारिज करने की मांग की।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इस बारे में 1332 पन्नों का जवाब दाखिल किया है। केंद्र ने शीर्ष अदालत से नए वक्फ कानून पर पूरी तरह से या आंशिक रूप से रोक नहीं लगाने का आग्रह किया। सरकार ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिक वैधता अनुमानित है और अदालत द्वारा इस पर किसी तरह की रोक का मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर प्रतिकूल परिणाम होगा।
विधायिका के बनाए कानून पर रोक लगाना अनुचित
सरकार ने कहा कि जब विधायिका ने एक कानून बनाया है, जिसे संवैधानिक माना जाता है, तो इसे बदलना या रोक लगाना अनुचित होगा। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि कानून में यह स्थापित सिद्धांत है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी।
सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है।
वक्फ परिषद या बोर्डों में मुस्लिम अल्पमत में नहीं
सरकार ने अपने हलफनामे में उन दलीलों का खंडन किया जिनमें कहा गया था कि वक्फ कानून में बदलाव के कारण केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में मुस्लिम अल्पमत में हो सकते हैं। सरकार ने कहा कि कुल 22 में से केवल चार गैर-मुस्लिम सदस्य केंद्रीय वक्फ परिषद का हिस्सा हो सकते हैं। जबकि राज्यों के वक्फ बोर्डों में 11 सदस्यों में से अधिकतम तीन सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने की संभावना है
संसद ने अधिकार क्षेत्र में ही किया संशोधन
सरकार ने कहा कि प्रावधान में बदलाव के जरिए संशोधन अधिनियम न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता लाता है। सरकार ने कहा कि संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर संशोधन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि वक्फ जैसी धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन इस तरह से हो कि उनमें आस्था रखने वालों का और बड़े पैमाने पर समाज का भरोसा बना रहे और धार्मिक स्वायत्तता का हनन न हो।