ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रधिया देवरिया गांव के तालाब में ही गांव के बेटे- बेटियां ओलंपिक की तैयारी कर रहे हैं। संसाधनों के अभाव के बावजूद गांव के युवा तैराकी में कई मेडल ला चुके हैं। नेशनल खेल चुकीं सौम्या, अंकिता और प्रियंका का कहना है कि हम लोगों का अब यही सपना है कि हम ओलंपिक में अपने देश के लिए खेलें और तैराकी में मेडल लाएं। इसके लिए हम गांव के तालाब में ही कड़ा प्रशिक्षण ले रही हैं। चाहे कोई भी मौसम हो, हम हर रोज सुबह-सुबह तालाब पहुंच जाती हैं और 4 घंटे प्रैक्टिस करती हैं।
तैराकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी और वर्तमान कोच रंजीत शर्मा कहते हैं- इन्हें तैराकी की सुविधाएं और अच्छी कोचिंग मिल जाए तो यहां के तैराक ओलंपिक में मेडल दिला सकते हैं। गांव में तैराकी की शुरुआत साल 1985 में हुई, जब गांव के भूपेंद्र उपाध्याय ने इस तालाब में तैराकी सीखी और पूर्वोत्तर रेलवे के कोच बन गए। इस तालाब से तैराकी सीखकर गांव के 50 से ज्यादा युवक और युवतियों ने खेल कोटे से सेना, रेलवे और अन्य विभागों में सरकारी नौकरियां भी हासिल की हैं। इसी तालाब से तैराकी सीखकर प्रियंका यादव ने विदेश में देश का प्रतिनिधित्व किया था। वर्तमान में वे बीएचयू में डिप्टी डायरेक्टर हैं। वहीं अशोक प्रजापति रेलवे के पूर्व खिलाड़ी रह चुके हैं। अमरनाथ यादव भी रेलवे में खिलाड़ी हैं। आनंद यादव आर्मी ग्रीन स्पोर्ट के कोच और प्रमोद यादव नोएडा में खुद की तैराकी क्लास चलाते हैं तो सोहन चौहान फरीदाबाद की एकेडमी में कोच हैं। यहां तैराकी की नियमित पाठशाला लगती है।