ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उच्च न्यायालय को किसी मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का अधिकार है, लेकिन उसे इस बात का कारण बताना होगा कि उसे क्यों लगता है कि राज्य पुलिस की तरफ से मामले की जांच निष्पक्ष नहीं थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो को गोरखा प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) में स्वैच्छिक शिक्षकों की भर्ती और नियमितीकरण से संबंधित मामले में कुछ पत्रों में लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश की तरफ से पारित आदेश को पढ़ने से पता चला कि इस बात की जरा भी भनक नहीं थी कि उच्च न्यायालय को राज्य की तरफ से की जा रही जांच अनुचित क्यों लगती है। पीठ ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उच्च न्यायालय, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जांच सीबीआई को सौंपने के लिए सशक्त है। पीठ ने कहा, हालांकि, ऐसा करने के लिए उसे इस बात पर विचार करना होगा कि राज्य पुलिस की तरफ से की गई जांच निष्पक्ष या पक्षपातपूर्ण क्यों नहीं है।
‘कुछ पत्रों के आधार पर इस तरह की कार्रवाई उचित नहीं’
पीठ ने कहा कि केवल कुछ पत्रों के आधार पर इस तरह की कार्रवाई उचित नहीं है। शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल की तरफ से दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें जलपाईगुड़ी में मौजूद उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच की खंडपीठ की तरफ से पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश की तरफ से पारित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने वाला अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।
उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने सीबीआई को पत्रों में लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच या विश्लेषण करने तथा जांच के परिणाम के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। अपने आदेश में खंडपीठ ने उल्लेख किया था कि उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक रिट याचिका में जीटीए में स्वैच्छिक शिक्षकों की भर्ती और नियमितीकरण से संबंधित कई मुद्दे उठाए गए थे।
अवैधता और खामियों के कारण सीबीआई जांच का दिया गया निर्देश
अप्रैल में पारित अपने आदेश में खंडपीठ ने कहा था, उक्त रिट याचिका की सुनवाई के दौरान, एकल पीठ के न्यायाधीश को पत्र प्राप्त हुए, जिसमें जीटीए और राज्य की कार्रवाई में कई अवैधताओं और खामियों को चिन्हित किया गया था, जिसके कारण एकल न्यायाधीश को सीबीआई की तरफ से आरोपों की प्रारंभिक जांच या विश्लेषण करने का निर्देश देने के लिए प्रेरित किया गया। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर कानून पूरी तरह से स्थापित है। खंडपीठ ने कहा, याचिका स्वीकार की जाती है। विवादित आदेश निरस्त किए जाते हैं।