डा. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का 100वां लॉन्च मिशन सफल हो गया है। एनवीएस-02 उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के बाद इसरो की इस उपलब्धि को बड़ा मुकाम करार दिया जा रहा है।
इसरो के अपने 100वें मिशन के तहत श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी-एफ15 के जरिए 2250 किलोग्राम के सैटेलाइट एनवीएस-02 को भेजा गया। नेवीगेशन उपग्रह एनवीएस-2 नेवीगेशन विद इंडियन कॉन्स्टैलेशन यानी नाविक श्रंखला का दूसरा उपग्रह है। इस श्रंखला में कुल पांच सैटेलाइट भेजे जाने हैं।
इससे पहले एनवीएस-01, जो दूसरी पीढ़ी का पहला सैटेलाइट था, 29 मई 2023 को जीएसएलवी-एफ12 के जरिए लॉन्च किया गया था जबकि एनवीएस-02, एनवीएस सीरीज का दूसरा सैटेलाइट है। इसमें एल1, एल5 और एस बैंड में नेवीगेशन पेलोड के साथ-साथ सी-बैंड में रेंजिंग पेलोड भी लगाया गया है, जैसा कि इसकी पहली पीढ़ी की सैटेलाइट एनवीएस-01 में था।
इसरो के मिशन में क्या-क्या खास
अंतरिक्ष मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक, एनवीएस-02 के जरिए भारत अपने नाविक सिस्टम को मजबूत करेगा। इसरो का यह उपग्रह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से देश में ही बना है। इसे यूआर सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी) में डिजाइन, विकसित और तैयार किया गया है। नवंबर-दिसंबर 2024 के बीच इस सैटेलाइट की टेस्टिंग की गई, जिसमें इसकी हर परिस्थिति का सामना करने की काबिलियत को परखा गया।
इसमें भारत के सटीक समय की जानकारी देने के लिए एक परमाणु घड़ी भी लगाई गई है, जिसे रूबिडियम एटॉमिक फ्रीक्वेंसी स्टैंडर्ड (आरएएफएस) भी कहा जाता है।
इस मिशन को लॉन्च करने की जरूरत क्यों
जिस नाविक प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए इस उपग्रह को लॉन्च किया गया है, उसके जरिए भारत को कई क्षेत्रों में स्वतंत्र और स्वायत्त बनाने के मिशन को आगे बढ़ाया गया है। मसलन भारत में अभी नक्शों से लेकर मोबाइल-कंप्यूटर पर समय तक के लिए लोगों को विदेशी तकनीक पर निर्भर रहना पड़ता है।
भारत में नक्शे पर किसी भी जगह या किसी चीज की सटीक स्थिति बताने, गति और डिजिटल डिवाइसेज पर सही समय बताने के लिए देश अब तक अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) तकनीक या रूस के ग्लोनास सिस्टम पर निर्भर है। इतना ही नहीं, दुनिया की अधिकतर महाशक्तियों ने सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम के क्षेत्र में स्वायत्तता हासिल करने के लिए अपनी खुद की प्रणालियां बना ली हैं। अमेरिका और रूस के अलावा चीन ने अपना नेवीगेशन सिस्टम स्थापित किया है। इसके अलावा यूरोपीय संघ अपने क्षेत्र में नेवीगेशन सेवाओं के लिए गैलिलियो सिस्टम का इस्तेमाल करता है।
क्यों भारत ने बनाया अपना नेवीगेशन सिस्टम
भारत की तरफ से अपना नेवीगेशन सिस्टम- नाविक बनाने की एक अहम वजह कूटनीतिक स्तर पर स्वतंत्रता और स्वायत्तता हासिल करना है। दरअसल, किसी तनाव की स्थिति में विदेशी ताकतें अपने सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम के इस्तेमाल को दूसरे देशों के लिए बंद कर सकती हैं।
भारत के साथ 1999 में यह हो भी चुका है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका से अपने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिए ट्रैकिंग की सुविधा कारगिल में मुहैया कराने की मांग की थी। इसके जरिए भारत आतंकियों की सही स्थिति जानने की कोशिश में था। हालांकि, तब अमेरिका ने इस मांग को नकार दिया था। तब भारत को पहली बार अपने स्वदेशी सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम की जरूरत महसूस हुई, जो देश के नक्शे पर सही स्थिति, सही समय और गति बताने का काम करे। इसी कड़ी में 2006 में भारत ने स्वदेशी प्रोजेक्ट नाविक की शुरुआत की।
भारत के स्वदेशी सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम का स्टेटस
भारत की तरफ से इस प्रोजेक्ट में सैटेलाइट लॉन्च करने की प्रक्रिया 2013 से ही शुरू कर दी गई थी। तब भारत ने आईआरएनएसएस वर्ग की सैटेलाइट लॉन्च की थीं। 2013 से 2018 तक इस रेंज के कुल नौ सैटेलाइट लॉन्च किए गए।
भारत ने इसके बाद एनवीएस सीरीज का सैटेलाइट्स लॉन्च करना शुरू किया। इन सैटेलाइट का मकसद आईआरएनएसएस सैटेलाइट प्रणालियों को और मजबूत करना है। एनवीएस-2 इस श्रेणी की सबसे नई सैटेलाइट है।
इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक कुल 11 सैटेलाइट (नौ आईआरएनएसएस सैटेलाइट और दो एनवीएस सैटेलाइट) लॉन्च किए गए हैं, जिनमें से एक का लॉन्च नाकाम रहा था। वहीं 10 सैटेलाइट अपनी कक्षाओं में हैं। इनमें से 6 सैटेलाइट ठीक ढंग से काम कर रहे हैं। वहीं चार सैटेलाइट शॉर्ट मैसेज ब्रॉडकास्ट सेवाओं में काम आ रहे हैं।
किस काम में आ रहा भारत का यह सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम
भारत का यह सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम फिलहाल सैन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए ही सीमित रखा गया है। यानी इस सिस्टम को कूटनीतिक क्षेत्र में प्रयोग किया जा रहा है।
हालांकि, एनवीएस सैटेलाइट्स के कक्षा में स्थापित होने के बाद नाविक सिस्टम और ज्यादा मजबूत होकर उभरेगा। एनवीएस वर्ग की पांच सैटेलाइट्स की स्थापना के बाद नाविक सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम को नागरिकों को भी मुहैया कराए जाने की संभावना है।
यह सिस्टम कितना सटीक होगा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह भारत की धरती पर 10 मीटर की दूरी तक की सही गणना बता देगा।