ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि देश में ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तक पहुंच बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। संसद द्वारा 2008 में पारित एक अधिनियम में नागरिकों को उनके घर के निकट न्याय उपलब्ध कराने के लिए ग्राम न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया था तथा यह सुनिश्चित किया गया था कि सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी को भी न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केंद्र और सभी राज्यों को उच्चतम न्यायालय की निगरानी में ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा, कुछ राज्य कह रहे हैं कि हमें ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे पास न्याय पंचायतें हैं। उन्होंने कहा कि न्याय पंचायतें वास्तव में ग्राम न्यायालयों जैसी नहीं हैं, जिनमें न्यायिक अधिकारी होते हैं। पीठ ने मामले में सहायता के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता को ‘एमिकस क्यूरी’ (अदालत मित्र) के रूप में नियुक्त किया। पीठ ने कहा, जितनी जल्दी ये न्यायालय स्थापित हो जाएं… न्याय तक पहुंच उतनी ही बेहतर होगी।