ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल कानून पारित होने के एक दशक से अधिक समय बाद, लोक सेवकों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार संबंधी अपराधों की प्रारंभिक जांच के लिए एक प्रकोष्ठ का गठन किया गया है।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 (2013 का अधिनियम) 1 जनवरी, 2014 को लागू हुआ, जब इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। हालांकि, इसने अपने अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के बाद 27 मार्च, 2019 को ही काम करना शुरू किया था।
सरकारी आदेश के अनुसार, जांच प्रकोष्ठ में लोकपाल अध्यक्ष के अधीन एक जांच निदेशक होगा, जिन्हें तीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) एसपी (सामान्य), एसपी (आर्थिक और बैंकिंग) तथा एसपी (साइबर) मदद करेंगे। प्रत्येक एसपी को जांच अधिकारी और अन्य कर्मचारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। कानून में यह प्रावधान है कि जब तक लोकपाल द्वारा जांच प्रकोष्ठ का गठन नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र सरकार अपने मंत्रालयों या विभागों से उतनी संख्या में अधिकारी और अन्य कर्मचारी उपलब्ध करााएगी, जितनी लोकपाल को प्रारंभिक जांच करने के लिए आवश्यक हो। लोकपाल अधिनियम के तहत लोक सेवकों के खिलाफ अभियोजन के लिए अभियोजन निदेशक की अध्यक्षता में अभियोजन विंग गठित करने का भी प्रावधान है, हालांकि इसका गठन अभी तक नहीं किया गया है। इसमें कहा गया है, बशर्ते जब तक लोकपाल द्वारा अभियोजन शाखा का गठन नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र सरकार अपने मंत्रालयों या विभागों से उतनी संख्या में अधिकारी और अन्य कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जितनी लोकपाल को इस अधिनियम के तहत अभियोजन के लिए जरुरत हो। कानून के मुताबिक, लोकपाल द्वारा निर्देश दिए जाने के बाद अभियोजन निदेशक जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार विशेष अदालत के समक्ष मामला दायर करेगा तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दंडनीय किसी अपराध के सिलसिले में अभियोजन के संबंध में सभी आवश्यक कदम उठाएगा।