ब्लिट्ज ब्यूरो
कोपनहेगन। धरती का तापमान बढ़ने से इंसान की नींद कम हो रही है। पिछले दो दशक में बढ़ते तापमान से इंसानों ने प्रतिवर्ष औसतन 44 घंटे की नींद गंवाई है। डेनमार्क की कोपेनहेगेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध में दावा किया है।
जर्नल स्लीप मेडिसिन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के कारण तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। इससे इंसान की नींद में खलल पड़ रहा है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने 68 देशों में 47 हजार से ज्यादा लोगों के आंकड़े जुटाए।
उच्च आय वाले देशों में बड़ी दिक्कत
रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने अमेरिका, एशिया और यूरोप जैसे महाद्वीपों में तापमान का अध्ययन किया। इसमें पाया कि हर साल तापमान में एक डिग्री की वृद्धि के कारण 10 हजार से अधिक व्यक्तियों ने पर्याप्त नींद की कमी महसूस की। यह समस्या उच्च आय वाले देशों में बढ़ी है।
गर्मी से तनाव का तंत्र हो जाता है सक्रिय
शोध से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंसान का दिमाग गर्मी के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। जब तापमान बढ़ता है तो दिमाग शरीर का तापमान नियत रखने की प्रणाली को तेज करने के साथ ही तनाव के तंत्र को भी सक्रिय कर देता है। यह स्थिति अच्छी नींद के लिए अनुकूल नहीं है।
स्वास्थ्य पर असर
नींद में जरूरत से ज्यादा कमी शरीर के रिकवरी तंत्र में बाधा डालती है। कम समय के लिए ऐसा होने पर थकावट के साथ-साथ दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। बे समय तक नींद की कमी से वजन बढ़ना, मधुमेह, हृदय संबंधी रोग और अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिड बीमारियां होने की आशंका है।
प्रतिरोधक क्षमता भी हो सकती है प्रभावित
शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है कि लंबे समय तक पूरी नींद न लेने की वजह से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ सकती है। साथ ही इसका मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है।