ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। बच्चे की उम्र चाहे जो भी हो, हर उम्र में उसकी परवरिश अभिभावकों के लिए एक नई चुनौती लेकर आती है। बच्चा बहुत छोटा है, तो उस उम्र की अपनी चुनौती है और अगर वह प्री-टीन यानी 9 से 12 साल का है, तो उसकी अलग। अगर आपका बच्चा भी इस दौर में है, तो उसकी परवरिश आसान नहीं होने वाली। इस वक्त न तो वो किशोर ही है और न ही बच्चा। उसके भीतर एक अलग तरह की ही उठा-पटक चल रही होती है। वह शारीरिक, मानसिक बदलावों के दौर से गुजर रहा होता है। वह अपने दुख को गुस्से के तौर पर बयां करता है। नौ से बारह साल की यह अवस्था तमाम हार्मोन्स के बदलाव का दौर होता है। लिहाजा, उसके स्वभाव में उतार-चढ़ाव यानी मूड स्विंग का होना लाजमी है। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। आपको उन्हें सिर्फ संभालना नहीं होता बल्कि उन्हें समझाना और पर्दे के पीछे रहकर उन्हें रास्ता भी दिखाना होता है।
दीजिए उन्हें समय
प्री-टीन्स को खुलकर बात करने के लिए राजी करना अकसर मुश्किल होता है। लिहाजा, आपको उससे बात करने के लिए ज्यादा कोशिश करनी होगी। इस काम के लिए हफ्ते में एक या दो बार उसे वक्त दीजिए। उस समय आपको सिर्फ और सिर्फ उसे वक्त देना है। मोबाइल या अन्य लोगों से दूरी बनाकर यह वक्त अपने बच्चे को दें।
बदलें बातचीत का तरीका
जब बच्चा बदल रहा है, तो उससे बात करने के तरीके में भी आपको बदलाव लाने की दरकार है। जब वो छोटा था, तो आप सीधे उनसे सवाल कर सकती थीं। जैसे, स्कूल कैसा था? अब सवाल करने का यह सीधा तरीका उसे सवालों की बौछार और दखलंदाजी जैसा लग सकता है। आपको अपने बच्चे से यही सवाल अब घुमाकर पूछना होगा और एक अच्छे श्रोता की तरह बिना टोका-टाकी के उन्हें सुनना होगा। ऐसा करने से आप उनके बारे में ज्यादा जानकारी जुटा पाएंगे।
डॉ. उन्नति कुमार की मानें तो हर चीज का सही वक्त होता है और उस वक्त की आहट के पहले ही हमें बच्चे को उसकी जानकारी दे देनी चाहिए। जैसे बच्चा घर से पहली बार बाहर निकलता है, तो उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव आते हैं या लड़की की बढ़ती उम्र में उसके जेहन में कुछ सवाल कौंध जाते हैं। ऐसा होने के पहले ही उन्हें आने वाले बदलावों या उनकी संभावनाओं से अवगत करा दें। तभी बच्चा समय आने पर उन चुनौतियों से सही तरीके से निपट पाएगा।
प्रतिक्रिया न हो नकारात्मक
बढ़ती उम्र के साथ बच्चे के मन में ढेरों सवाल आते हैं। डॉ. कुमार कहते हैं कि कोई भी सवाल गलत नहीं होता। गलत होता है, तो एक अभिभावक के रूप में आपकी प्रतिक्रिया। किसी भी बात, किसी भी सवाल के लिए जजमेंटल न हों। बच्चे की जिज्ञासा का सामान्य व्यवहार के साथ समाधान करें। उससे उस मुद्दे पर चर्चा करें और सटीक जानकारी दें। वह असहज दिखे तो उससे सवाल करें और बिना किसी पूर्वाग्रह के उसका जवाब दें। कभी भी उसके सवालों के सिलसिले को डांट-डपटकर बंद न करें।
ये बातें आएंगी काम
– अपने प्री-टीन बच्चे से पहले की तरह बातचीत करने में अगर आप चुनौती का सामना कर रही हैं, तो कुछ अन्य तरीके आपकी मदद कर सकते हैं।
– उसके सभी सवालों का सहजता से जवाब दें। कोई भी सवाल गलत नहीं होता, इसलिए सवाल पूछने पर बच्चे को न डांटें वरना वह आपसे बातें छुपाने लगेगा।
– अगर बेटी है, तो उसे किशोरावस्था में होने वाले बदलावों के बारे में पहले से बताएं। सैनेटरी पैड को छिपाकर रखना बंद करें। इसकी आपके घर में मौजूदगी आपके बेटे के लिए सामान्य बात होनी चाहिए।
– आपको ऑनलाइन या बुक स्टोर में ऐसी किताबें मिल जाएंगी, जो उसे किशोरावस्था को समझने में मदद कर सकती हैं।
– बच्चा इस उम्र में कई ऐसी बातें करेगा, जो आपको गलत लग सकती हैं। उसके बोलने के तरीके में बदलाव आ सकता है। पहले जहां वह आपकी अधिकांश बातें मानता होगा, अब अपनी राय देना शुरू कर देगा। बच्चे के स्वभाव में आ रहे इन बदलावों को सहज रूप से लें। अगर वह गलत तरीके से बात कर रहा है या प्रतिक्रिया दे रहा है, तो तुरंत उसे डांटने या टोकने की जगह दो मिनट बाद उसे टोकें कि क्या उसके बोलने का यह तरीका सही था? बच्चा अपनी गलती न सिर्फ स्वीकारेगा बल्कि स्वभाव में जरूरी सुधार भी लाएगा।