ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। कोलकाता में महिला डॉक्टर से रेप के बाद हत्या मामले को लेकर पूरा देश गुस्से हैं। हर कोई आरोपियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग कर रहा है लेकिन अक्सर देखा गया है कि रेप के मामले में आरोपियों को सजा मिलते-मिलते काफी लंबा अरसा बीत जाता है। जांच में देरी के चलते सालों तक मुकदमा चलता है। लंबी कानूनी प्रक्रिया का फायदा आरोपियों को मिलता है। कई बार देखा गया है कि मुकदमा पूरा होने के बावजूद आरोपियों को सजा नहीं मिलती और वे आसानी से बरी हो जाते हैं।
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच और मुकदमा चलाने में बड़ी चुनौतियां हैं। 2022 में लगभग 45,000 रेप के मामलों की जांच पुलिस को सौंपी गई थी, लेकिन केवल 26,000 मामलों में ही चार्जशीट दायर की गई। रिपोर्ट के अनुसार 2022 में रेप के लगभग 32,000 मामले पुलिस में दर्ज किए गए थे। हालांकि, पिछले वर्षों से लंबित 13,000 से अधिक मामले पहले से ही विचाराधीन थे, जिससे पुलिस पर लगभग 45,000 मामलों की जांच का बोझ था। यह उन मामलों का 60 प्रतिशत से भी कम था जिनकी उन्हें जांच करनी थी और 2022 में दर्ज घटनाओं की संख्या से भी कम थी। यह समस्या केवल रेप केस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सभी 11 श्रेणियों में देखी गई है जिनका विश्लेषण किया गया है। यह दर्शाता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए प्रभावी कानून और न्यायिक प्रक्रियाओं की सख्त आवश्यकता है।
आखिर न्याय में देरी की वजह क्या है?
कानून के जानकार बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में या तो आरोपी बरी हो जाते हैं या फिर मामले अदालत तक पहुंच ही नहीं पाते। 2022 में पिछले सालों के लंबित मामलों को मिलाकर अदालतों में सुनवाई के लिए लगभग 2 लाख मामले थे। हालांकि, केवल 18,000 से थोड़े ही ज्यादा मामलों में सुनवाई पूरी हो सकी, जो कि उस साल दर्ज की गई प्राथमिकियों और पुलिस चार्जशीट की संख्या से भी कम है। रेप के मामलों में हर 10 में से 7 आरोपी बरी हो जाते हैं।