ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। कुछ साल पहले तक सुखविंदर सिंह ने बायोफोर्टिफाइड सीड्स के बारे में कभी सुना भी नहीं था। बायोफोर्टिफाइड सीड्स वो बीज होते हैं जिन्हें खास पोषक तत्वों जैसे आयरन और जिंक की मात्रा बढ़ाने के लिए तैयार किया जाता है। सुखविंदर सिंह अब इन बीजों का इस्तेमाल करके अपनी 5.5 एकड़ जमीन पर गेहूं उगा रहे हैं और काफी खुश हैं।
इसके पीछे कारनामा लखनऊ के ऐश्वर्या भटनागर और प्रतीक रस्तोगी का है। यह कपल ‘ग्रीनडे’ नाम से एक पहल चला रहा है। यह पहल किसानों और ग्राहकों दोनों के लिए फायदेमंद है। वे खेती के नए तरीके और ऐसे बीज बढ़ावा दे रहे हैं जिनमें पोषक तत्व ज्यादा हों। इसके जरिए यह कपल (ऐश्वर्या भटनागर और प्रतीक रस्तोगी) लगभग 10 करोड़ रुपये सालाना कमा रहा है।
49 साल के सुखविंदर सिंह ने बायोफोर्टिफाइड सीड्स अपनाने का फैसला कर लिया क्योंकि वे केमिकल फर्टिलाइजर के बढ़ते इस्तेमाल से चिंतित थे। उनका मानना था कि ये केमिकल फर्टिलाइजर न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि खाने वालों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हैं। इसलिए उन्होंने जिंक से भरपूर बायोफोर्टिफाइड सीड्स में निवेश करने की सोची। सुखविंदर सिंह के लिए बायोफोर्टिफाइड सीड्स का इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उनके अनाज की क्वॉलिटी बहुत बेहतर हो गई। उत्तर प्रदेश के रहने वाले सुखविंदर सिंह बताते हैं, ‘मेरे बच्चे बायोफोर्टिफाइड सीड्स से उगाए गए गेहूं से बनी रोटी को ज्यादा स्वादिष्ट बताते हैं। सुखविंदर सिंह बताते हैं कि भले ही इन बीजों से प्रति एकड़ पैदावार थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर फायदे बहुत ज्यादा हैं। इन फायदों में कम लागत और बेहतर क्वालिटी शामिल है, जो पैदावार में थोड़ी सी कमी को पूरा कर देते हैं। इसके अलावा, उन्हें सामान्य गेहूं के 2000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव की जगह 2600 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है।
कैसे हुई कारोबार की शुरुआत
2016 में आईआईएम अहमदाबाद से पढ़ाई और एंटरप्रेन्योरशिप ट्रेनिंग पूरी करने के बाद प्रतीक को अपने गृह राज्य में कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाने की तीव्र इच्छा हुई। उन्हें सलाह दी गई थी कि वे बिजनेस में आसानी के लिए महाराष्ट्र और गुजरात जैसे ज्यादा विकसित राज्यों में जाएं, लेकिन उन्होंने मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। ये ऐसे इलाके थे जहां कृषि में अभी काफी सुधार की जरूरत थी। कॉर्पोरेट जगत में एक साल काम करने के बाद, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी पत्नी ऐश्वर्या के साथ अपने पैतृक गांव सीतापुर चले गए। ऐश्वर्या, आईएचएम बॉम्बे की छात्रा रह चुकी हैं और उन्होंने फूड साइंसेज और न्यूट्रिशन की पढ़ाई की है।
2020 में हुआ कंपनी का जन्म
कपल की कंपनी ग्रीनडे की शुरुआत जनवरी 2020 में हुई। कपल का लक्ष्य सिस्टम में इनोवेशन लाना और फसल पोषण को बढ़ाना था। प्रतीक कहते हैं कि ग्रीनडे का विजन सरल लेकिन प्रभावशाली था। उन्होंने कहा कि हम फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार करना चाहते थे और साथ ही किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना चाहते थे।
गोरखपुर, बस्ती, गोंडा, बाराबंकी और अन्य क्षेत्रों के हजारों किसानों के साथ सहयोग के माध्यम से, इस पहल ने बायोफोर्टिफाइड बीजों को अपनाने को बढ़ावा दिया। अपने स्टार्टअप द्वारा बनाए गए प्रभाव को देखते हुए ऐश्वर्या कहती हैं कि सीतापुर में किसानों के साथ मिलकर ढाई साल बिताने के बाद उन्होंने अपार क्षमता देखी।































