ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। क्लाइमेट सेंट्रल ने अपनी नई रिपोर्ट में बताया है कि इस साल जून, जुलाई और अगस्त में दुनिया के हर चौथे व्यक्ति ने जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक गर्मी का सामना किया। जून से अगस्त के दौरान 200 करोड़ से अधिक लोगों ने 30 दिनों तक अत्यधिक गर्मी झेली, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा।
इस दौरान 72 देशों में 1970 से अब तक की सबसे भीषण गर्मी पड़ी, और यह गर्मी पूरी तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से थी। नॉर्दर्न हेमीस्फेयर में 180 देशों ने जून से अगस्त के दौरान कम से कम एक बार तीव्र लू का सामना किया, जिसे कार्बन प्रदूषण ने 21 गुना अधिक घातक बना दिया। क्लाइमेट सेंट्रल के वाइस प्रेजिडेंट एंड्रयू पर्शिंग के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने तापमान को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। कोई भी रीजन, देश या शहर इस खतरे से सुरक्षित नहीं है। उन्होंने बताया कि 13 अगस्त अब तक के इतिहास का सबसे गर्म दिन रहा।
गर्मी का अधिक असर
जून से अगस्त का सीजन 1970 से अब तक का दूसरा सबसे गर्म सीजन रहा। इन तीन महीनों में, 29 दिन ऐसा तापमान दर्ज किया गया जो जलवायु परिवर्तन के कारण तीन गुना अधिक था। इस अवधि में 2 करोड़ 5 लाख लोगों ने कम से कम 60 दिन अत्यधिक गर्मी का सामना किया।
– इस साल जून से अगस्त के बीच 72 देशों में 1970 से अब तक की सबसे भीषण गर्मी पड़ी
भारत सदर्न एशियन देशों में ऐसा देश बन गया है, जहां अधिकांश लोग क्लाइमेंट चेंज के कारण गर्मी की चपेट में रहे। देश की कुल 138 करोड़ की आबादी में से 42 करोड़ 60 लाख लोग सात दिन तक अत्यधिक गर्मी के जोखिम में रहे, जो कि कुल आबादी का एक तिहाई है।
बढ़ते तापमान से भट्ठी बने शहर
इस दौरान 11.2 करोड़ लोगों ने करीब एक महीने तक स्वास्थ्य के लिहाज से घातक गर्मी झेली। कुछ शहरों में तो गर्मी का बेहद बुरा असर देखने को मिला। तिरूवनंतपुरम, वसई-विरार, कावारत्ती, ठाणे, मुंबई और पोर्ट ब्लेयर जैसे शहरों में 70 या उससे अधिक दिन जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान तीन गुना अधिक रहा।
मुंबई में 54 दिन अधिक गर्मी रही, जबकि कानपुर और दिल्ली में एक लंबा दौर ऐसा रहा, जब तापमान 39 डिग्री से ऊपर गया। जलवायु परिवर्तन के कारण यह तापमान चार गुना अधिक था।