दीपक द्विवेदी
हम उम्मीद कर सकते हैं कि मॉरीशस के साथ भारत के संबंध अब एक नए अध्याय में प्रवेश करेंगे जिसमें नई वैश्विक परिस्थितियों के मुताबिक रणनीतियां स्वरूप धारण करेंगी और रिश्तों का नया सागर छलकेगा।
– मल्टी हर्बल फॉर्मूले में बिल्व, अश्वगंधा, कुकुंदर, चुकरी, खरबूजा और शहद
दुनिया इस समय भू-राजनीति के एक कठिन दौर से गुजर रही है और इसमें आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर नए ध्रुव भी बन रहे हैं। ऐसे में भारत के रुख पर विकासशील देशों अथवा ‘वैश्विक दक्षिण’ के साथ-साथ महाशक्ति माने जाने वाले देशों की भी नजर रहती है। शीतयुद्ध के दौर में भी दुनिया जब दो मुख्य ध्रुवों में बंटी हुई थी और कई देशों के नीतिगत फैसले भी उसी से तय होते थे, उस दौर में भी भारत का महत्व जगजाहिर रहा है। अब पिछले कुछ समय से अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ दुनिया भर में बन रहे नए समीकरणों के बीच भी भारत का रुख सभी देशों के लिए अहमियत रखता है। यह अच्छा ही है कि भारत ने महाशक्ति कहे जाने वाले से लेकर तमाम अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को सदैव ही विशेष महत्व दिया है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभी हाल ही में संपन्न हुई दो दिवसीय मॉरीशस यात्रा भी आती है जो दोनों देशों के करीबी रिश्तों के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़े तमाम पहलुओं को बेहतरीन ढंग से उजागर करती है।
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच हुए आठ समझौते बेहद अहम रहे हैं। यात्रा के आखिरी दिन ‘उन्नत रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत-मॉरीशस का संयुक्त दृष्टिकोण’ जारी किया गया जो मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच खास और अनूठे संबंधों को प्रतिबिंबित करता है। दोनों देशों के बीच सहमति के तहत बुनियादी ढांचा कूटनीति, वाणिज्य, क्षमता निर्माण, वित्त, आवास, अपराध की जांच, समुद्री यातायात निगरानी, डिजिटल प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित बातचीत के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर जोर दिया गया। इनमें भारत द्वारा मॉरीशस के नए संसद भवन का निर्माण भी शामिल है। पिछले कुछ वर्षों से चीन के रवैये के मद्देनजर रक्षा और समुद्री सुरक्षा सहयोग को भारत और मॉरीशस के बीच संबंधों का एक महत्वपूर्ण स्तंभ मान कर साझेदारी के सफर को आगे बढ़ाना भी एक अहम कड़ी है। हालांकि मुक्त और सुरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र सुनिश्चित करने के मामले में साझा प्रतिबद्धता वाले देश के रूप में इन दोनों देशों को एक स्वाभाविक साझीदार माना जाता रहा है। इसी वजह से क्षेत्र में समुद्री चुनौतियों का सामना करने और व्यापक रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए मिल कर काम करने का अपना पुराना संकल्प भी दोनों देशों ने दोहराया।
यही नहीं, पीएम मोदी को वहां के सर्वोच्च सम्मान ‘द ग्रांड कमांडर ऑफ ऑर्डर ऑफ स्टार एंड की ऑफ इंडियन ओशन’ से सम्मानित किया जाना भी खास रहा। ये सब उन रिश्तों के अच्छे फल मात्र हैं, जिनकी जड़ें दोनों देशों की समान सांस्कृतिक और औपनिवेशिक पृष्ठभूमि से ताकत लेते हुए उन्हें वर्तमान और भविष्य की साझा दृष्टि से युक्त करती है। इस साझा सांस्कृतिक विरासत का एक बड़ा आधार है मॉरीशस के समाज के बड़े हिस्से का भारतीय मूल का होना। 13 लाख आबादी वाले इस द्वीपीय देश में करीब 70 प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं। इसी से जुड़ा दूसरा अहम पहलू यह है कि मॉरीशस भी गुलामी के खिलाफ लंबे संघर्ष से गुजर चुका है। 1968 में ब्रिटेन से आजादी हासिल करने के बाद भी देश के एक हिस्से पर संप्रभुता कायम करने की उसकी जद्दोजहद हाल तक चलती रही। ब्रिटेन ने मॉरीशस की आजादी के बाद भी उसके एक द्वीपसमूह चागोस पर अपनी संप्रभुता बनाए रखी थी। लंबी कशमकश के बाद पिछले साल उसने चागोस पर मॉरीशस की संप्रभुता को मान्यता देना स्वीकार कर लिया, इस शर्त के साथ कि उसके एक हिस्से, डिएगो गार्सिया द्वीप पर अगले 99 साल तक उसका कब्जा बना रहेगा। दरअसल डिएगो गार्सिया में अमेरिका-ब्रिटेन का सैन्य अड्डा है। इस लंबी लड़ाई के दौरान मॉरीशस के संघर्ष में भारत हमेशा मॉरीशस के साथ बना रहा है। न सिर्फ पीएम मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान इस तथ्य को रेखांकित किया बल्कि मॉरीशस के प्रधानमंत्री रामगुलाम ने भी इसे दोनों देशों की दोस्ती का एक पुख्ता प्रमाण कहा।
पीएम मोदी की यह यात्रा दस वर्षों के अंतराल पर हुई है और इसमें संबंधों की बेहतरी इस रूप में भी व्यक्त हुई कि तब भारत का जो विजन उन्होंने ‘सागर’ (सिक्यॉरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) के रूप में प्रकट किया था, वह अब महासागर (म्युचुअल एंड होलिस्टिक एडवांसमेंट फॉर सिक्योरिटी एंड ग्रोथ एक्रॉस रीजंस) के स्वरूप में आ चुका है। इसका असर स्वाभाविक ही सहयोग और साझेदारी के तमाम रूपों पर नजर आ रहा है। दरअसल, भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकता सूची में ‘पड़ोस प्रथम’ के तहत भी मॉरीशस का स्थान महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में मॉरीशस अपनी भौगोलिक अवस्थिति की वजह से भारत के लिए एक बेहद अहम रणनीतिक साझेदार है और भारत को भी इसकी अहमियत का भान है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि मॉरीशस के साथ भारत के संबंध अब एक नए अध्याय में प्रवेश करेंगे जिसमें नई वैश्विक परिस्थितियों के मुताबिक रणनीतियां स्वरूप धारण करेंगी और रिश्तों का नया सागर छलकेगा।