दीपक द्विवेदी
अभी सिर्फ दिवाली गई है। दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग का असली दौर तो आना अभी बाकी है। हमें यह समझना होगा कि प्रदूषण चाहे पटाखों से हो या अन्य किसी भी कारण से; वह स्वास्थ्य के लिए सिर्फ हानिकारक है। हमें उसकी चिंता करते हुए हर स्तर पर कार्य करना होगा जो सभी के योगदान से ही संभव है।
दीपावली ऐसा पर्व है जो देश में ही नहीं; विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। फर्क बस यह है कि जहां भारत से बाहर इस पर्व पर कई देशों में आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध अथवा नाम मात्र की छूट है तो वहीं भारत में कई जगह पर प्रतिबंध होने के बाद भी बड़े पैमाने पर आतिशबाजी होती है और पटाखे छुड़ाए जाते हैं। देश का सुप्रीम कोर्ट भी गत कई वर्षों से प्रदूषण रोकने के लिए पटाखे आदि पर दिल्ली–एनसीआर क्षेत्र में रोक लगाता रहा है पर फिर भी लोग उसे नहीं मानते। दरअसल दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिस पर देशवासी खुल कर खुशी मनाते हैं। यह देश की आस्था और परंपराओं के साथ सदियों से देशवासियों की रग-रग में बसा है। वे इस दिन सदियों से आतिशबाजी करते आ रहे हैं। इसलिए इस मौके पर लोगों को रोक पाना शायद इतना आसान भी नहीं हो पा रहा। अत: कोशिश ये होनी चाहिए कि लोग समझें कि पटाखों से प्रदूषण बढ़ता है और यह बहुत से लोगों के लिए घातक भी हो सकता है। इसमें वायु के अतिरिक्त ध्वनि का प्रदूषण भी शामिल है।
इस बार दीपावली मनाकर सोए दिल्ली–एनसीआर वाले जब सुबह उठे तो उनका सामना धुंध और धुएं की मोटी चादर से हुआ। सुबह राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बहुत खराब श्रेणी में दर्ज किया गया। पिछले तीन साल में दिल्ली की यह दीपावली सबसे ज्यादा प्रदूषित रही। राजधानी में पटाखों के प्रतिबंध की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं जिसकी वजह से दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित शहर बन गया। सिर्फ दिल्ली ही नहीं दिवाली के अगले दिन हरियाणा व पंजाब के कई जिलों, चंडीगढ़ और कोलकाता में एक्यूआई का स्तर ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया। वहीं, देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भी शुक्रवार को एक्यूआई 400 का स्तर लांघ गया था जो बताता है कि हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक दीपावली पर दिल्ली का 24 घंटे का औसत एक्यूआई 330 दर्ज किया गया जबकि 2023 में यह 218 और 2022 में 312 था। एक्यूआई शुक्रवार को सुबह नौ बजे 362 यानी बहुत खराब श्रेणी में दर्ज किया गया। हालांकि, कई स्थानों पर एक्यूआई 390 तक तक भी जा पहुंचा था। 39 में से 37 निगरानी केंद्रों ने वायु गुणवत्ता को बहुत खराब श्रेणी में दर्ज किया। पीएम 2.5 सूक्ष्म कणों की हवा में सांद्रता भी सुरक्षित सीमा से अधिक थी। पीएम 2.5 सूक्ष्म कण आसानी से श्वसन प्रणाली में प्रवेश कर जाते हैं और बच्चों, बुजुर्गों और पहले से ही श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों की हेल्थ के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित शहर रहा। दिवाली के बाद दिल्ली की हवा इतनी खराब हो गई कि सांस लेना दूभर हो रहा था। खासकर जो लोग पहले से अस्थमा, हार्ट और सांस की बीमारी से पीड़ित हैं, उनकी परेशानी और बीमारी दोनों बढ़ गई। डॉक्टरों का कहना था कि बीमारी इतनी ज्यादा हो गई है कि दवा की डोज बढ़ानी पड़ी। दिवाली पर आतिशबाजी के बाद जानवरों के अस्पताल में भी मरीजों की संख्या बढ़ गई। लोकल सर्कल्स के दिल्ली-एनसीआर के 21 हजार लोगों पर किए सर्वे के अनुसार बैन के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में खूब पटाखे जले। एक्यूआई 456 तक पहुंच गया था। इसी तरह का सर्वे ग्रैप-1 लागू होने के बाद 19 अक्टूबर को किया गया था। दोनों सर्वे से सामने आया कि कुल मिला कर दिल्ली-एनसीआर के 69 प्रतिशत परिवारों को प्रदूषण ने परेशान किया। सर्वे में दिल्ली के अलावा गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद के लोग शामिल हुए। सर्वे में पूछा गया कि परिवार में कितने लोगों को प्रदूषण महसूस हो रहा है। जवाब में 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि परिवार के लोगों को गला खराब और कफ की समस्या हो रही है। 62 प्रतिशत ने आंखों में जलन, 46 प्रतिशत ने नाक बहने या कंजेशन, 31 प्रतिशत ने सांस लेने में समस्या या अस्थमा, 31 प्रतिशत ने सिरदर्द, 23 प्रतिशत ने तनाव, 15 प्रतिशत ने सोने में कठिनाई की बात कही। 31 प्रतिशत ने कहा कि उनके परिवार को प्रदूषण से कोई समस्या नहीं हुई। लोकल सर्कल्स के अनुसार दो हफ्ते पूर्व इसी तरह के सर्वे में 36 प्रतिशत परिवारों को इस तरह की समस्या थी। यानी दो हफ्ते में समस्या 36 प्रतिशत से बढ़कर 69 प्रतिशत हो गई।
कहा जा रहा है कि इस बार प्रदूषण पहले से कम रहा। इसके पीछे तेज हवा और कुछ हद तक बैन प्रमुख कारण हो सकते हैं पर दिल्ली-एनसीआर की असली परीक्षा अभी बाकी है। हवा में प्रदूषण का जो मौजूदा स्तर अभी था; वह किसी भी रूप में संतोषजनक नहीं है। यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। अभी सिर्फ दिवाली गई है। दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग का असली दौर तो आना अभी बाकी है। हमें यह समझना होगा कि प्रदूषण चाहे पटाखों से हो या अन्य किसी भी कारण से; वह स्वास्थ्य के लिए सिर्फ हानिकारक है। हमें उसकी चिंता करते हुए हर स्तर पर कार्य करना होगा जो सभी के योगदान से ही संभव है।