दीपक द्विवेदी
गत कुछ वर्षों में साइबर अपराध में तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसे में साइबर सुरक्षा सुनिश्चित किए बिना देश के विकास की कल्पना करना संभव नहीं है। अत: डिजिटल अर्थव्यवस्था को बनाए रखने और इसे बढ़ाने के लिए साइबर चुनौतियों का पता लगाना और समय के साथ साइबर सुरक्षा के लिए प्रभावी समाधान खोजना अत्यंत आवश्यक होता जा रहा है। आज अनेक किस्म के साइबर अपराध सामने आ रहे हैं। इनमें पहचान की चोरी, क्रिप्टोजैकिंग, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, साइबर आतंकवाद से लेकर साइबर अपराधों के अनेक रूप हैं। तेजी से बढ़ते डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (ई-कॉमर्स) और ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है जिससे साइबर अपराध और अधिक बढ़ रहे हैं।
वर्तमान में इंटरनेट ने जहां दुनिया को एक गांव में तब्दील कर दिया है, वहीं डिजिटलीकरण ने उस दुनिया को और बदल दिया है। दूरियां तेजी से खत्म हो रही है और लोगों की पहचान भी आसानी से उजागर हो रही है। कहीं से भी, कभी भी संवाद स्थापित करना पलक झपकते संभव है। परंतु इसी सरलता ने देशी-विदेशी अपराधियों को अपराध के नए-नए तरीके खोजने का भी एक अवसर प्रदान कर दिया है। साइबर अपराध से ही जुड़ा एक ताजा मामला यह भी सामने आया है जिसमें दक्षिण पूर्वी एशिया के एक देश लाओस से सैकड़ों ऐसे भारतीयों को साइबर ठगों के जाल से मुक्त कराया गया है जो नौकरी के लालच में फर्जीवाड़े का शिकार हो रहे थे। भारतीय दूतावास ने हाल ही में ऐसे 47 भारतीयों को बचाया है जो लाओस पहुंचने के बाद साइबर ठगों के जाल में फंस गए थे। भारतीय दूतावास के मुताबिक अब तक लाओस से ऐसे 635 भारतीयों को बचाया जा चुका है जो जॉब स्कैम में फंसकर लाओस में प्रताड़ना का शिकार हो रहे थे।
आज तमाम ऐसे लोग मौजूद हैं जो इसका लाभ उठाकर आम जन तथा हमारे देश को ही नहीं, पूरी दुनिया को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। साइबर हमलों के माध्यम से ऐसे प्रयास बढ़ रहे हैं, जिनमें से कुछ स्थानीय आपराधिक तत्वों के अलावा सीमाओं के पार से भी प्रायोजित अपराध भी शामिल हैं। इन साइबर हमलों से भारत के दूरसंचार, बैंकों, बिजली, अस्पतालों से लेकर सरकारी और निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों तक के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भी गंभीर खतरा है। अपराधियों का मकसद है व्यवस्था को ध्वस्त करना और लूट, फिरौती एवं अराजकता के माध्यम से लोगों में अविश्वास पैदा करना।
सुरक्षा एजेंसियों ने इस अपराध को रोकने के लिए अनेक उपाय किए हैं। जी20 के दौरान तो भारतीय प्रतिष्ठानों और जी20 आयोजनकर्ताओं के दफ्तरों पर हजारों नहीं, लाखों हमले हुए। परंतु हमारी एजेंसियों ने अपना कौशल दिखाते हुए उन्हें नाकाम कर दिया। जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान हर 60 सेकेंड में 16 लाख साइबर अटैक हुए थे। देश में रोजाना साइबर अपराध के चलते 50000 कॉल मिल रही हैं। एक लाख लोगों पर 129 शिकायतें दर्ज हो रही हैं।
हजारों साइबर अपराधी पकड़े जा रहे हैं और उन पर कार्रवाइयां हो रही हैं। गत वर्ष भी अनेक स्थानों पर छापेमारी की गई थी। इनमें से एक मामला क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी के जरिए भारतीय नागरिकों के 100 करोड़ रुपये गबन करने के रैकेट से संबंधित था। छापेमारी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में विभिन्न ठिकानों पर की गई थी। इससे पहले सीबीआई के ‘ऑपरेशन चक्र’ के तहत भी 26 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए गए थे। अभियान का उद्देश्य भारत में इन अंतर्राष्ट्रीय साइबर अपराध गिरोहों के बुनियादी ढांचे को खत्म करना और अपराधियों को न्याय के दायरे में लाना है। इसी उद्देश्य से भारत और फ्रांस ने साइबर, अंतरिक्ष और कृत्रिम बुद्धि में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जताई थी ताकि ऐसे अपराधों पर लगाम लगाई जा सके। इन अपराधों को रोकने तथा लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की टीम द्वारा शुरू की गई ‘साइबर सेफ इंडिया पहल’ गृह मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। केंद्रीय गृह मंत्रालय में साइबर क्राइम से निपटने के लिए स्थापित किए गए ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (आईफोरसी) ने अब तक कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। साइबर हमले चीन, पाकिस्तान से तो होते ही हैं, तुर्की और यहां तक कि अमेरिका-कनाडा से भी होते हैं। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र ने देशभर में 1200 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है और लगभग पांच लाख शिकायतों का निपटारा किया है। ‘साइबर दोस्त’ नामक एक सोशल मीडिया हैंडल भी संचालित किया जा रहा है, जो विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुरक्षा से जुड़े टिप्स मुहैया कराता है।
केंद्र सरकार साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने और तंत्र को मज़बूत करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। अंतर्राष्ट्रीय संगठित साइबर अपराध के खिलाफ भारत की लड़ाई ने एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। फिर भी भारत के साथ-साथ दुनिया भर में प्रौद्योगिकी पर मनुष्यों की बढ़ती निर्भरता के संग साइबर कानूनों की गति बनाए रखने के लिए निरंतर उन्नयन और परिशोधन की आवश्यकता है। इसलिए बढ़ते राष्ट्रव्यापी जोखिमों को नियंत्रित तथा विकास की गति को बनाए रखने के लिए सतर्कता के साथ निरंतर महत्वपूर्ण प्रयास जरूरी हैं।