ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर अहम निर्णय सुनाने हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से देशभर में सेक्स एजुकेशन लागू करने को भी कहा है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने ने अपने 200 पन्नों के फैसले में सुझाव दिया कि व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना संभावित अपराधियों को रोकने में मदद कर सकता है। पीठ के अनुसार, इन शिक्षा कार्यक्रमों में बाल पॉर्नोग्राफी के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल होनी चाहिए। फैसले में कहा गया है, इन कार्यक्रमों के जरिये आम गलतफहमियों को दूर किया जाना चाहिए और युवाओं को सहमति एवं शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ प्रदान की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि प्रारंभिक पहचान, हस्तक्षेप और वैसे स्कूल-आधारित कार्यक्रमों को लागू करने में स्कूल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो छात्राओं को स्वस्थ संबंधों, सहमति और उचित व्यवहार के बारे में शिक्षित करते हैं और समस्याग्रस्त यौन व्यवहार (पीएसबी) को रोकने में मदद कर सकते हैं। पीठ ने कहा, उपर्युक्त सुझावों को सार्थक प्रभाव देने और आवश्यक तौर-तरीकों पर काम करने के लिए, भारत संघ एक विशेषज्ञ समिति गठित करने पर विचार कर सकता है, जिसका काम स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिए एक व्यापक कार्यक्रम या तंत्र तैयार करने के साथ ही देश भर में बच्चों के बीच कम उम्र से ही पॉक्सो के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी हो, ताकि बाल संरक्षण, शिक्षा और यौन कल्याण के लिए एक मजबूत और सुविचारित दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके।
पीठ ने पीड़ितों को सहायता सेवाएं प्रदान करने और अपराधियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इन सेवाओं में अंतर्निहित मुद्दों के समाधान और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप और शैक्षिक सहायता शामिल होनी चाहिए।
पीठ ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से बाल यौन शोषण सामग्री की वास्तविकताओं और इसके परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से ऐसी घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है और इन अभियानों का उद्देश्य यह होना चाहिए।
– यौन शोषण सामग्री नाबालिगों की गरिमा को ठेस पहुंचाती है
पीठ ने कहा कि बाल यौन शोषण सामग्री नाबालिगों की गरिमा को बहुत अधिक ठेस पहुंचाती है और यह उन्हें यौन संतुष्टि की वस्तु बना देती है, उनकी मानवता का हरण कर लेती है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
पीठ ने कहा कि यौन शोषण का कोई भी कृत्य स्वाभाविक रूप से बच्चे पर स्थायी शारीरिक और भावनात्मक आघात पहुंचाता है। उसने कहा कि हालांकि, अश्लील सामग्री के माध्यम से (यौन) दुर्व्यवहार के इस कृत्य का प्रसार अभिघात को और अधिक गंभीर तथा गहरा कर देता है, जिससे मनोवैज्ञानिक मर्ज बन जाता है।
पीठ ने कहा कि यह तय करना महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक रूप से ‘बाल पोर्नोग्राफी’ कहे जाने वाले प्रत्येक मामले में वास्तव में बच्चे का शोषण होता है। ‘बाल पोर्नोग्राफ़ी’ शब्द का उपयोग अपराध को महत्वहीन बना सकता है, क्योंकि पोर्नोग्राफ़ी को अक्सर वयस्कों के बीच सहमति से किया गया कार्य माना जाता है।