ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। अमेरिकी यू-ट्यूबर लेक्स फ्रिडमैन के साथ पॉडकास्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), संघ से संबंध, अंतरराष्ट्रीय संबंधों जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की। प्रधानमंत्री ने चीन के साथ मजबूत रिश्तों की वकालत की। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अपने संबंधों को परस्पर विश्वास का बताया। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश…
भारत एआई के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कैसे हासिल कर सकता है।
दुनिया चाहे एआई को और विकसित करने के लिए कुछ भी कर ले, लेकिन भारत के सहयोग के बिना यह अधूरा रहेगा। इंसानी दिमाग के बिना एआई स्थायी रूप से प्रगति नहीं कर सकता। मेरा मानना है कि एआई विकास मूलतः एक सहयोग है। इसमें शामिल सभी लोग साझा अनुभवों और सीख के जरिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। भारत सिर्फ इसका मॉडल नहीं बना रहा, बल्कि इसके विशेष उपयोग के मामलों के हिसाब से एआई आधारित एप्लिकेशन भी विकसित कर रहा है।
■ आप आठ साल की उम्र में आरएसएस में शामिल हुए। आरएसएस का आप पर क्या प्रभाव पड़ा।
मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं, जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सम्मानित संगठन से जीवन का सार और मूल्य सीखे। संघ से जुड़ने के बाद ही मुझे जीवन का उद्देश्य मिला। बचपन में मुझे आरएसएस की शाखाओं में शामिल होना अच्छा लगता था। मेरे मन में हमेशा एक ही लक्ष्य था, देश के काम आना। यही मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी सिखाया है। दुनिया में आरएसएस से बड़ा कोई स्वयंसेवी संगठन नहीं है। आरएसएस को समझना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए पहले संघ के कामकाज को समझना होगा। यह संगठन स्वयंसेवकों को जीवन का उद्देश्य देता है। यह सिखाता है कि राष्ट्र ही सब कुछ है और समाज सेवा ही ईश्वर की सेवा है। हमारे वैदिक संतों और स्वामी विवेकानंद ने जो कुछ भी सिखाया है, संघ भी यही सिखाता है।
■ आप और शी जिनपिंग एक-दूसरे को दोस्त मानते हैं। चीन के साथ संवाद और दोस्ती को किस नजरिए से देखते हैं।
मैं मानता हूं कि भारत और चीन के बीच मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन मजबूत सहयोग दोनों पड़ोसियों के हित में है और यह वैश्विक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। भारत और चीन सीमा पर 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर झड़पों से पहले वाली स्थितियों को बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं। मेरी सोच है कि 21 वीं सदी एशिया की सदी है, हम चाहते हैं कि भारत और चीन स्वस्थ और स्वाभाविक तरीके से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा बुरी चीज नहीं है, लेकिन इसे कभी संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए। भारत, चीन के बीच संबंध नए नहीं हैं क्योंकि दोनों की संस्कृति, सभ्यताएं प्राचीन हैं।
■ आप भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती और शांति का क्या रास्ता देखते हैं।
पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का मेरा पहला प्रयास सद्भावना का संकेत था, जब मैंने नवाज शरीफ को शपथ ग्रहण समारोह के लिए निमंत्रण भेजा था। यह कूटनीतिक कदम था, जो दशकों में नहीं देखा गया। जिन्होंने कभी विदेश नीति के प्रति मेरे दृष्टिकोण पर सवाल उठाया था, वे उस समय अचंभित रह गए, जब उन्हें पता चला कि मैंने दक्षेस देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया। मेरा मानना है कि पाकिस्तान के लोग भी शांति चाहते हैं क्योंकि वे भी संघर्ष, अशांति में रहते हुए थक गए होंगे।
■ ट्रंप ने कहा कि आप उनसे ज्यादा बेहतर मोलभाव करते हैं। एक वार्ताकार के तौर पर आप उनके बारे में क्या सोचते हैं और इसका क्या मतलब था कि आप बेहतर मोलभाव करते हैं।
मैं नहीं जानता कि उनके मोलभाव का क्या मतलब था, लेकिन वह हमेशा भारत के साथ संबंधों को लेकर तारीफ करते हैं। मैं और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बेहतर तरीके से एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं, क्योंकि हम दोनों ही राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने में विश्वास करते हैं। हाल में ही संपन्न अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप की टीम से मुझे मिलने का अवसर मिला। मेरा मानना है कि ट्रंप ने मजबूत और सक्षम टीम बनाई है और वे अपने दृष्टिकोण को लागू करने में पूरी तरह सक्षम हैं। मैं सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम को याद करता हूं कि किस तरह ट्रंप ने दर्शकों के बीच बैठकर मेरा भाषण सुना था। यह उनकी विनम्रता है। मैंने उस वक्त दृढ़ ट्रंप को भी देखा जब अमेरिकी चुनाव अभियान के दौरान उन पर गोली चली थी। इसके बाद भी वह अमेरिका के लिए समर्पित रहे।
■भारत में 60 करोड़ से ज्यादा लोग मतदान करते हैं। इतने बड़े लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए क्या करना पड़ता है।
मैं भारत के तटस्थ और स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की सराहना करता हूं। दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का प्रबंधन करने वाली संस्था का वैश्विक समुदाय को अध्ययन और विश्लेषण करना चाहिए।
– मैं और ट्रंप, दोनों ही राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने में विश्वास करते हैं
– ट्रंप ने दर्शकों के बीच बैठकर मेरा भाषण सुना था
– आरएसएस को समझना कोई आसान काम नहीं