दीपक द्विवेदी
भारत को किसी भी अन्य देश से कोई भी मदद मिले तो बिना हिचक ले क्योंकि नीति यही कहती है, “शठे शाठ्यम समाचरेत्” यानी कि “दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए।” यह एक नीतिगत सिद्धांत है जो बताता है कि यदि कोई व्यक्ति दुष्ट है या दुष्टतापूर्ण व्यवहार करता है, तो उसके साथ भी उसी प्रकार का व्यवहार करना ही उचित है
कश्मीर में पहलगाम के बैसरन मैदान में निर्दोष और निहत्थे टूरिस्टों पर पूर्व नियोजित तरीके से किए गए। निर्मम आतंकवादी हमले में 28 पर्यटकों की जान चली गई। इस हमले में कई लोग घायल हो गए। इस आतंकवादी हमले में पर्यटकों से उनका धर्म पूछ-पूछ कर उन्हें गोली मार दी गई। अभी तक यह कहा जाता रहा है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता पर इस हमले ने एक बार फिर इस तथ्य को बेनकाब कर दिया और विपक्षी दल अथवा जो लोग किन्हीं भी कारणों से यह दोहरा रहे हैं तो वे खुद को भी स्वत: ही बेनकाब कर रहे हैं। यह घिनौना आतंकवादी हमला सिर्फ उस जिहादी आतंकवाद की याद दिला रहा है जिसने पूरे कश्मीर क्षेत्र को वर्षों से खतरे में डाल रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब से भारत में सरकार बनी है; तभी से प्रधानमंत्री मोदी विशेष रूप से इस प्रयास में जुटे हैं कि जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल हो। वहां के नागरिक देश की विकास धारा में सक्रिय रूप से भागीदार हों। पीएम मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जिहादी आतंकवाद को समाप्त करने और कश्मीर में विकास की धारा बहाने के लिए अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाया। कश्मीर को अनेक बड़े-बड़े आर्थिक पैकेज दिए और तमाम महत्वपूर्ण फैसलों के जरिए जब जम्मू–कश्मीर देश की मुख्य धारा में शामिल होने के लिए खुद को तैयार कर रहा था, तभी सीमा पार से आए आतंकवादियों ने कुछ क्षेत्रीय आतंकियों के साथ मिल कर इस प्रयास को नुकसान पहुंचाने का गंभीर दुस्साहस किया है।
पहलगाम हमले के बाद जम्मू-कश्मीर एक बार फिर अनेक सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। इन सवालों में एक बड़ा सवाल यह भी है कि अब आगे क्या होगा? क्या कभी यह क्षेत्र जिहादी आतंकवाद के दंश से मुक्त हो सकेगा? शायद यह तब तक मुमकिन नहीं होगा जब तक नापाक पाकिस्तान सलामत है, अथवा उसे इतना कड़ा सबक नहीं मिल जाता कि वह भविष्य में कभी भी आतंकवादियों का आका बन कर उन्हें जम्मू-कश्मीर में कोई भी घिनौनी हरकत करने के लिए भेजने से पहले हजार बार सोचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और आतंकियों तथा उनके आकाओं को मिट्टी में मिलाने का जो संकल्प व्यक्त किया है, वह उनका एक विरल उद्गार है। पीएम के इस उद्गार में इस हमले में मारे गए लोगों का दर्द भी शामिल है और उनका गुस्सा भी। बिहार के मधुबनी की धरती से उन्होंने पूरी दुनिया को यह संदेश भी दिया कि भारत हर आतंकवादी और उसके समर्थकों की पहचान करेगा, उनका पीछा करेगा और उन्हें दंडित करेगा। आतंकवादियों को दंडित किए बिना नहीं छोड़ा जाएगा। इसमें भारत को हर उस देश का समर्थन हासिल हुआ जो आतंकवाद के दंश से पीड़ित है। पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस नापाक पाकिस्तान देश के कुछ ऐसे मददगार देश भी हैं जिनकी भारत ने मुश्किल समय पर मदद की किंतु आज वे इस नापाक देश के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इनमें से एक है तुर्किये जिसे भारत ने भूकंप के समय सबसे पहले मदद की।
खबरें हैं कि तुर्किये और चीन भारत से तनाव के बीच पाकिस्तान को बड़ी सैन्य मदद दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार 27 -अप्रैल को तुर्किये के सी-130 हरक्यूलिस सैन्य विमान ने कराची में लैंड किया, जिसमें युद्ध सामग्री भरी हुई थी। इसके बाद, छह और तुर्किये के सी-130 विमान इस्लामाबाद के सैन्य अड्डे पर पहुंचे। तुर्किये का यह कदम पाकिस्तान के लिए एक बड़े समर्थन के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि तुर्किये ने हथियार दिए जाने से इनकार किया है। इसके साथ ही चीन ने भी पाकिस्तान को ड्रोन जैसे रक्षा उपकरण भेजने की जानकारी दी है। ये भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं कि पाकिस्तान एयर फोर्स (पीएएफ) को चीन से अत्याधुनिक पीएल-15 बहुत लंबी रेंज के एयर-टू-एयर मिसाइल की फास्ट डिलीवरी मिली है। पीएएफ ने अपनी नई जेएफ-17 ब्लॉक III फाइटर जेट की तस्वीरें जारी की हैं। यदि ये रिपोर्ट्स सही हैं, तो यह बीजिंग से इस्लामाबाद को एक आपातकालीन हथियारों की आपूर्ति को दर्शाता है जो उस महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रही है जब भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव कभी भी युद्ध में बदल सकता है। वजह साफ है कि पाकिस्तान को भारत के एक्शन का डर सता रहा है। जब से भारत ने पाकिस्तान पर एक्शन लेना शुरू किया है और पीएम नरेंद्र मोदी चेतावनी दे चुके हैं कि भारत की धरती पर इस तरह के घिनौने कृत्य करने वालों का अंजाम इतना बुरा होगा कि इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, पाकिस्तान छटपटा रहा है। इस बीच रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की, पाकिस्तान और चीन के बीच इस बढ़ते सैन्य सहयोग से दक्षिण एशिया में भौगोलिक राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि भारत हर ओर ध्यान देते हुए अपनी ऐसी रणनीति बनाए जिससे दहशतगर्दी के इन नापाक समर्थकों को ऐसी चोट पहुंचे जिसका सबक ये ताउम्र न भूल पाएं। इसके लिए भारत को किसी भी अन्य देश से कोई भी मदद मिले तो बिना हिचक ले क्योंकि नीति यही कहती है, ‘शठे शाठ्यम समाचरेत्’ यानी कि दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए। यह एक नीतिगत सिद्धांत है जो बताता है कि यदि कोई व्यक्ति दुष्ट है या दुष्टतापूर्ण व्यवहार करता है, तो उसके साथ भी उसी प्रकार का व्यवहार करना ही उचित है।