ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा अब खतरे की अंतिम सीमा को छूने लगी है। मई में इसका स्तर 430 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) के पार चला गया, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह न केवल पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहा है बल्कि समुद्री जीवन से लेकर मौसमी बदलाव तक व्यापक स्तर पर तबाही का कारण बन रहा है।
मई के दौरान हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला पर किए गए पर्यवेक्षण में पाया गया कि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का औसत स्तर 430.2 पीपीएम तक पहुंच गया। यह जानकारी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्क्रिप्स ओशियानोग्राफी संस्थान और अमेरिका की राष्ट्रीय समुद्री वायुमंडलीय संस्था के वैज्ञानिकों ने दी है। मौना लोआ वेधशाला वातावरण में मौजूद सीओ2 की निगरानी के लिए दुनिया की सबसे अहम जगह है। एनओएए के अनुसार मई में यह औसत 430.5 पीपीएम दर्ज किया गया जो मई 2024 की तुलना में 3.6 पीपीएम अधिक है।
समुद्री जीवन पर भी संकट
वायुमंडलीय सीओ2 न केवल पृथ्वी की सतह पर तापमान बढ़ा रही है बल्कि समुद्रों के लिए भी गंभीर खतरा बन चुकी है। जब सीओ2 समुद्री जल में घुलती है तो वह उसे अधिक अम्लीय बना देती है जिससे झींगे, सीप, मूंगे जैसे जीवों के खोल कमजोर हो जाते हैं। इससे समुद्रों में ऑक्सीजन की मात्रा भी घट रही है जो समुद्री जीवन के लिए अत्यंत घातक है।
मानव ही संकट की मुख्य वजह
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस संकट के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि मानव समाज स्वयं है। जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला, डीजल, पेट्रोल का अत्यधिक इस्तेमाल, तेजी से होती वनों की कटाई, बढ़ते औद्योगिक उत्पादन और अनियंत्रित परिवहन व्यवस्था ने धरती को इस स्थिति तक पहुंचाया है।