ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसों को बंद करने की मांग के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे अच्छी शिक्षा नहीं पा रहे हैं। एनसीपीसीआर का कहना है कि मदरसे राइट टु एजुकेशन (आरटीई) एक्ट के दायरे में नहीं आते, जिससे इन बच्चों को स्कूलों जैसी शिक्षा नहीं मिल पाती। आरटीई एक्ट के तहत स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील, यूनिफॉर्म और अच्छे शिक्षक मिलते हैं, पर मदरसों में ये सुविधाएं नहीं हैं।
‘शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे बच्चे’
एनसीपीसीआर का मानना है कि इससे मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। मदरसे को राइट टु एजुकेशन एक्ट से बाहर रखा गया है। ऐसे में मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे न सिर्फ क्वालिटी एजुकेशन, बल्कि औपचारिक शिक्षा से भी वंचित हो रहे हैं। इसके साथ ही वे शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। एनसीपीसीआर ने मदरसों में शिक्षा के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं। वहां बच्चों को शारीरिक दंड देना, शिक्षा के अधिकार कानून के खिलाफ है।
क्या है मामला?
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम’ को रद कर दिया था। एनसीपीसीआर ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसों में बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती। यहां शिक्षक भी योग्य नहीं हैं। यह कानून बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहा है।
उसने यह भी कहा कि मदरसे गैर-मुस्लिम बच्चों को इस्लामिक शिक्षा दे रहे हैं। यह संविधान के खिलाफ है।
‘यह बच्चों के साथ भेदभाव है’
एनसीपीसीआर ने आगे कहा, ‘अल्पसंख्यक दर्जे वाले ये संस्थान बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। यह बच्चों के साथ भेदभाव है। उन्हें कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) का अधिकार नहीं मिल रहा है।