ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नीतिगत रूप से प्रभाव छोड़ने वाले अहम फैसले में कहा कि मातृत्व लाभ महिला के प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है और मातृत्व अवकाश उन लाभों का अभिन्न अंग है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें सरकारी शिक्षिका को यह कहते हुए तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश देने से इन्कार कर दिया गया था कि राज्य सरकार की नीति के अनुसार यह लाभ दो बच्चों तक सीमित है।
जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, मातृत्व लाभ प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है। हाईकोर्ट के विवादित आदेश को खारिज किया जाता है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि मातृत्व अवकाश मौलिक अधिकार न होकर वैधानिक अधिकार या सेवा शर्तों से मिलने वाला अधिकार है। मामले में महिला सरकारी कर्मचारी मातृत्व अवकाश का अनुरोध खारिज होने के बाद मद्रास हाईकोर्ट पहुंची थी। उसकी पहली शादी से दो बच्चे थे और तलाक के बाद दोनों पिता की कस्टडी में थे। 2018 में पुनर्विवाह के बाद उसने तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश मांगा, जो सेवा में शामिल होने के बाद पैदा हुआ पहला बच्चा था। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा था कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5 में प्रसव की संख्या पर कोई सीमा नहीं रखी गई है, इसलिए मातृत्व लाभ का दावा किया जा सकता है। राज्य सरकार ने इसे चुनौती दी तो हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आदेश खारिज कर दिया। तब महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बच्चों की संख्या के आधार पर अवकाश पर रोक नहीं
शीर्ष पीठ ने कहा, मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017, दो से अधिक बच्चों पर मातृत्व अवकाश पर रोक नहीं लगाता। इसके बजाय, छुट्टी की अवधि को सीमित करता है-दो से कम बच्चों वाली महिलाओं के लिए 26 सप्ताह और अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिए 12 सप्ताह। यानी, बच्चों की संख्या के आधार पर मातृत्व अवकाश से इन्कार नहीं किया जाता।