दीपक द्विवेदी
जैसी कि उम्मीद थी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रिकॉर्ड बनाते हुए लगातार 8वीं बार पेश किए गए वित्तीय वर्ष 2025-26 के अपने बजट के माध्यम से मध्यम वर्ग को बड़ी राहत दी है। यह वर्ग पिछले कई सालों से इस राहत को पाने की आस लगाए बैठा था। इस बात की संभावना भी जताई जा रही थी कि इस वर्ग पर इस बार विशेष कृपा हो सकती है। इसलिए और भी, क्योंकि आर्थिक सर्वे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं प्रार्थना करता हूं कि ‘मां लक्ष्मी देश के गरीब और मध्यम वर्ग पर अपनी कृपा बनाए रखें।’ वित्त मंत्री ने 12 लाख रुपये की आय पर कोई टैक्स न देने की घोषणा कर सचमुच कृपा कर दी। इसके अनुकूल नतीजे देखने को मिलने चाहिए; इसकी अब पूरी संभावना भी बन गई है। मोदी की सरकार जब 2014 में बनी थी तब ढाई लाख रुपये की आय पर कोई टैक्स नहीं लगता था। इस बार इसे बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया है। स्वयं पीएम मोदी ने भी कहा है कि यह बजट सेविंग्स, निवेश, ग्रोथ और कंजंप्शन को बढ़ाएगा। आज देश ‘विकास भी, विरासत भी’; इस मंत्र को लेकर चल रहा है। इस बजट में इसके लिए भी ठोस कदम उठाए गए हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि टैक्स छूट से मध्यम वर्ग की जेब में अतिरिक्त पैसा आएगा और इसके चलते खपत बढ़ेगी एवं देश के विकास की गति में भी इजाफा होगा, पर यह कितना होगा; यह तो समय ही बताएगा।
वित्त वर्ष 2025-26 का बजट ऐसे समय में पेश किया गया है जब व्यापक आर्थिक हालात अनिश्चितता के दायरे में हैं। हाल की तिमाहियों में देश की आर्थिक वृद्धि सुस्त पड़ गई है। वैश्विक व्यापार की भविष्य की रूपरेखा भी अनिश्चित सी नजर आ रही है। कोविड महामारी के दीर्घकालिक असर अब आर्थिक गतिविधियों पर नहीं दिख रहे हैं मगर भारत में सार्वजनिक ऋण के शीर्ष स्तरों पर यह अब भी देखा जा रहा है। वर्तमान में इन सभी अनिश्चितताओं के साथ एक साथ नहीं जूझा जा सकता। इस तथ्य को समझते हुए सरकार ने अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के कारणों को समझने एवं उन्हें दूर करने पर अपना फोकस किया है। उपभोग या खपत में कमी पर हाल में काफी बात हुई है और इसे ही कमजोर वृद्धि दर के लिए उत्तरदायी कहा जा रहा है। बजट में आयकर में राहत देकर और शहरी दिक्क तों पर गौर करके इस विकराल समस्या को दूर करने की कोशिश की गई है।
बजट यह संकेत दे रहा है कि सरकार देश में जो आर्थिक सुस्ती नजर आ रही है, उसे दूर करने के लिए प्रयत्नशील है। वह इसमें सफल हो सकती है क्योंकि आयकर में छूट देने के साथ ही उसने कुछ समय पहले आठवें वेतन आयोग के गठन की भी घोषणा की है। हालांकि बजट यह संकेत नहीं करता कि सरकार चीन की ओर से पेश की जा रही आर्थिक चुनौती का सामना कैसे करने को तैयार है। आज चीन पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। विश्व के अनेक देश भारत को चीन के विकल्प के रूप में देखते नजर आ रहे हैं पर भारत को विकसित करने की जो बातें हो रही हैं, उनके अनुरूप बजट में विशेष व्यवस्था करने की भी जरूरत है। प्राइवेट सेक्टर बजट घोषणाओं से उत्साहित नहीं दिखा। इसका पता शेयर बाजार के रुझान से ही चल गया। यदि प्राइवेट सेक्टर चीन की चुनौती का सामना करने में समर्थ नहीं हुआ तो आठ प्रतिशत की विकास दर हासिल करना कठिन होगा जो विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए सर्वाधिक जरूरी है।
दरअसल अर्थव्यवस्था को न केवल बल मिलना चाहिए बल्कि वह कहीं तेज गति से आगे बढ़नी चाहिए। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि आर्थिक सर्वे जहां यह कह रहा है कि आगामी वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की दर 6.3 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है वहीं देश को विकसित बनाने के लिए हमें कम से कम दस वर्षों तक 8 प्रतिशत विकास दर की आवश्यकता होगी। यह लक्ष्य आखिर कैसे हासिल होगा? वैसे बजट में एक बड़ा संदेश यह दिया गया है कि उपभोग बढ़ने के साथ ही आर्थिक वृद्धि पटरी पर आ जाएगी। इस बजट से जुड़ी राजनीति में भी पारदर्शिता दिखी जो असामान्य उपलब्धि मानी जा सकती है। सरकार ने कुछ राज्यों के लिए विशेष घोषणाएं तो की हैं मगर उनसे सरकारी खजाने पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। प्रत्यक्ष करों को तर्कसंगत बनाने के साथ कर सुधार की उम्मीद लंबे समय से की जा रही है। अगर 2025 में आर्थिक वृद्धि पटरी पर लौट आई तो फिर इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। साथ ही साथ अर्थव्यवस्था की गति को और बल देने के लिए आवश्यकतानुसार अन्य कदम भी समय-समय पर उठाने होंगे।