दीपक द्विवेदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 सितंबर से 23 सितंबर तक तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा पर रहे। इस दौरान पीएम मोदी ने अनेक महत्वपूर्ण बैठकों और कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इसमें क्वाड लीडर्स समिट, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत कई देशों के राजनेताओं के साथ उनकी अहम द्विपक्षीय बातचीत और संयुक्त राष्ट्र के ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में उनका संबोधन भी शामिल है। ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में पीएम मोदी ने अनेक ऐसे महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए जो स्वयं संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के तमाम बड़े देशों की आंखें खोलने वाले थे। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में सुधार की तुरंत आवश्यकता जैसा अहम संदेश भी इनमें छिपा था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार हुए बिना यह संस्था भी अब तेजी से अपना महत्व खोती जा रही है।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का नाम लिए बिना वैश्विक संस्थाओं में सुधार का मुद्दा उठाया। पीएम मोदी ने कहा कि वैश्विक संस्थाओं में सुधार जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत में जून में मानव के इतिहास में दुनिया के सबसे बड़े चुनावों में जनता ने हमें तीसरी बार लगातार देश की सेवा का मौका दिया है। आज मैं दुनिया के छठे हिस्से की उसी आवाज को आप तक पहुंचाने के लिए यहां आया हूं। यहां यह जानना भी जरूरी है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट का प्रबल दावेदार है। इस स्थान के लिए अमेरिका सहित अनेक देश भारत का समर्थन कर चुके हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि कुछ देश संयुक्त राष्ट्र में मठाधीश बने बैठे हैं जिनकी वजह से संयुक्त राष्ट्र में वांछित सुधार संभव नहीं हो पा रहे हैं।
इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बिना मैरिटाइम रूट्स पर बढ़ते खतरों और आतंकवाद का भी जिक्र किया। दरअसल, चीन ने हाल ही के सालों में हिंद महासागर और प्रशांत महासागर इलाके में विस्तारवादी प्रवृत्ति के तहत अपनी मौजूदगी को बढ़ाया है जबकि भारत इस तरह के विस्तारवाद की निंदा करता है। इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और राष्ट्रपति टो लाम तथा यूक्रेन के विशेष अनुरोध पर राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के संग बैठक की। 32 दिन के भीतर दोनों नेताओं की यह दूसरी मुलाकात थी। मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन दौरे पर जेलेंस्की से मिले थे। उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़े हुए दो वर्ष से अधिक हो चुका है। यह युद्ध समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा। आज सारी दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं कि इस युद्ध को समाप्त कराने में वह अहम भूमिका निभा सकता है। वैसे प्रधानमंत्री मोदी युद्ध को समाप्त कराने की पहल कर चुके हैं एवं इसके लिए वे हाल ही में रूस और यूक्रेन की यात्रा पर भी गए थे। इस संबंध में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी बताया कि पीएम मोदी ने जेलेंस्की से कहा है कि वे कई देशों के नेताओं से रूस-यूक्रेन जंग को लेकर बात करते रहते हैं। सबका मानना है कि जल्द युद्धविराम का रास्ता खोजना चाहिए। जेलेंस्की ने भी जंग रोकने के लिए किए जा रहे प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया तथा यूक्रेन यात्रा की भी सराहना की।
मिस्री ने बताया कि जहां तक द्विपक्षीय बैठकों का सवाल है, यह पहली बार था जब नेपाल के प्रधानमंत्री ओली और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात हुई। इस बैठक ने उन्हें दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और विकास साझेदारी, ऊर्जा, बिजली, भौतिक संपर्क, लोगों से लोगों के बीच संपर्क समेत द्विपक्षीय संबंधों के सभी क्षेत्रों में प्रगति करने की उनकी मंशा पर विचार करने का अवसर दिया। प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात में कुवैत के क्राउन प्रिंस ने कहा कि भारत कुवैत के इतिहास का हिस्सा है। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति ने भी प्रधानमंत्री मोदी को विभिन्न मुद्दों तथा इस क्षेत्र में शांति लाने में अपनी भूमिका निभाते रहने के लिए धन्यवाद दिया। इसके पूर्व न्यूयॉर्क के लॉन्ग आइलैंड स्थित नसाउ वेटरन्स मेमोरियल कोलेजियम में पीएम मोदी ने भारतीय समुदाय को संबोधित किया। इस मेगा इवेंट का नाम ‘मोदी एंड यूएस: प्रोग्रेस टुगेदर’ रखा गया था जिसमें 13,000 से अधिक भारतीय-अमेरिकियों ने हिस्सा लिया।
आयोजकों के अनुसार इनमें से अधिकतर न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी क्षेत्र से थे। अमेरिका-भारत सामरिक साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) ने कहा कि पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा प्रवासी भारतीयों के उत्साह, द्विपक्षीय साझेदारी में दोनों सरकारों के निरंतर आशावाद और लोगों के बीच की दोस्ती की गहराई को दिखाती है। प्रधानमंत्री ने यहां बोस्टन और लॉस एंजिलिस में दो नए वाणिज्य दूतावास खोलने की घोषणा भी की। इस यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका के बीच जो एक नया सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन स्थापित करने की योजना बनी है, वह गेम चेंजर साबित होने वाला है। यही नहीं ‘दोनों देशों की रक्षा साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्तंभ’ भी है। इन सबके बीच भारत को ऐसी परिस्थितियों पर भी नजर रखनी चाहिए कि अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देश भारत विरोधी तत्वों को महत्व नहीं दें क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा से पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने खालिस्तान समर्थकों से भेंट की जो किसी भी दृष्टि से भारत के हित में नहीं कही जा सकती। वैसे दोनों देशों के संबंध अब ऐसी स्थिति में हैं जहां परस्पर समझबूझ और अधिक बढ़ी है। इसकी पुष्टि विभिन्न क्षेत्रों में लगातार हो रहे समझौते भी करते हैं कि भारत-अमेरिका मैत्री पर किसी देश में सत्ता परिवर्तन से कोई अंतर नहीं पड़ेगा। निष्कर्ष के तौर पर पीएम मोदी की यह अमेरिका यात्रा भारत के लिए फलदायी और सफल रही है।