ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। बच्चों में सुनने की क्षमता कम होने से बचाने के लिए मोबाइल के इस्तेमाल की बढ़ती ‘लत’ को कम करना और गेमिंग के दौरान आवाज कम रखना बेहद जरूरी है। ऐसा न किया गया तो बच्चे स्थायी रूप से कम सुनाई देने की समस्या के शिकार हो जाएंगे। ‘वर्ल्ड हियरिंग डे’ पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि हर साल विश्व भर में बधिरता और सुनने में परेशानी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है। खासकर बच्चों में मोबाइल, लैपटाप या टीवी पर बढ़ते स्क्रीन टाइम और तेज आवाज के साथ गेमिंग करने से बधिरता की परेशानी देखने को मिल रही है जो आगे चलकर स्थायी बधिरता में भी बदल जाती है। बच्चों को इस ध्वनि प्रदूषण से सबसे अधिक खतरा है और उनके कान को कोई नुकसान नहीं पहुंचे, इसके लिए उनकी आदतों में सुधार करने और समय-समय पर उनके कान का चेकअप कराने की जरूरत है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए कहा कि तेज आवाज, गेमिंग और अत्यधिक स्कीन टाइम य यानी मोबाइल संचालित करने पर सुनने की क्षमता कम हो जाती है या फिर वह बहरेपन के शिकार हो जाते हैं। बच्चे इसके सबसे अधिक शिकार होते हैं। इसलिए माता-पिता और अभिभावकों को सलाह दी जाती है कि बच्चों को ऐसे गैजेट्स और मोबाइल फोन के इस्तेमाल को सीमित कर दें। साथ ही वह अपने बच्चों में ऐसे आधुनिक उपकरणों को सुनने के लिए सुरक्षित तरीके अपनाने’ की आदत डालें। नियमित रूप से डाक्टर से उनकी सुनने की क्षमता की जांच कराएं।
80 प्रतिशत लोग कम व मध्यम आय वर्ग के
डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया की निदेशक साइमा वाजेद ने कहा, विश्व भर में 1.5 अरब लोग इस समस्या से प्रभावित हुए हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में 40 करोड़ लोग बधिरता से ग्रस्त हो रहे हैं। इसके शिकार 80 प्रतिशत लोग कम व मध्यम आय वर्ग के हैं। बधिरता की समस्या उन सभी लोगों को आ सकती है जो साठ साल से ऊपर के हैं, जो नियमित रूप से हेड फोन से तेज आवाज में संगीत सुनते हैं। जो लोग शोरगुल के माहौल में काम करते हैं, या फिर जो लोग नियमित रूप से कंसर्ट या खेल के मैच देखने जाते हैं। कुछ लोगों को दवा विशेष से भी कान में इंफेक्शन हो जाता है।